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यात्रा पर निकलने से पहले हर किसी के मन में थोड़ा संशय, थोड़े डर और थोड़ी सी घबराहट की स्थिति बनती है
नई दिल्ली। यात्रा पर जाना जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। हर किसी को कभी ना कभी, किसी ना किसी काम से यात्रा करनी ही पड़ती है। यह भी उतना ही सत्य है कि यात्रा पर निकलने से पहले हर किसी के मन में थोड़ा संशय, थोड़े डर और थोड़ी सी घबराहट की स्थिति बनती है। यह एक स्वाभाविक मनोस्थिति है, जो नए स्थान पर मिलने वाली नई परिस्थितियों की कल्पना और अपने कार्य के फलीभूत होने, ना हो पाने के मिले-जुले भावों के कारण निर्मित होती है।
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ऐसे में यदि व्यक्ति किसी अभीष्ट की सिद्धि हेतु यात्रा पर निकल रहा हो, तो उसकी स्वाभाविक इच्छा होती है कि कुछ ऐसे उपाय या शगुन ज्ञात हों, जिनसे यात्रा शुभ और फलदायी हो।
तो चलिए, यात्रा की अन्य तैयारियों के साथ शगुन, अपशगुन और ऐसी ही कुछ काम की बातें जानते हैं, जो आपकी यात्रा को परम फलदायी बना सकती हैं..
यात्रा के शुभ-अशुभ शगुन
यात्रा
के
लिए
घर
से
निकलते
ही
यदि
दही,
दूध,
घी,
फल,
फूलमाला,
हाथी,
घोड़ा,
गाय,
बैल,
चावल,
पानी
भरा
घड़ा,
सफेद
वस्त्र
पहने
कुंवारी
कन्या,
बैंड-
बाजे,
घुड़सवार
आदि
अचानक
सामने
पड़ें,
तो
इन्हें
शुभ
लक्षण
माना
जाता
है।
इनके
दर्शन
मात्र
से
कार्य
की
सफलता
की
आशा
और
संभावना
दोगुनी
हो
जाती
है।
इसके
ठीक
विपरीत
यदि
घर
से
निकलते
ही
खोटे,
बदसूरत,
दुखदायी
पदार्थ
जैसे
तेल
बेचता
हुआ
व्यक्ति,
लंगड़ा,
काना,
कपड़े
धोते
हुए
व्यक्ति,
हड्डी,
बिल्ली,
विधवा
स्त्री,
वस्त्रहीन
मनुष्य,
सांप,
भैंस,
सियार,
ग्वाला,
बीमार
कुत्ता,
रोने
की
आवाज,
गंदे
सुअर
आदि
सामने
पड़ें,
तो
इसे
अशुभ
लक्षण
माना
जाता
है।
ऐसी
स्थिति
में
यथासंभव
यात्रा
टाल
देनी
चाहिए।
यदि
यात्रा
पर
जाना
अति
आवश्यक
हो,
तो
इष्ट
देव,
कुल
देव,
पितृ
देव
आदि
का
ध्यान
कर
समुचित
संकल्प
द्वारा
शांति
परिहार
कर
यात्रा
प्रारंभ
करनी
चाहिए।
यात्रा की शुभता के लिए दिशा एवं वार विचार
यात्रा
के
लिए
घर
से
निकलते
ही
यदि
दही,
दूध,
घी,
फल,
फूलमाला,
हाथी,
घोड़ा,
गाय,
बैल,
चावल,
पानी
भरा
घड़ा,
सफेद
वस्त्र
पहने
कुंवारी
कन्या,
बैंड-
बाजे,
घुड़सवार
आदि
अचानक
सामने
पड़ें,
तो
इन्हें
शुभ
लक्षण
माना
जाता
है।
इनके
दर्शन
मात्र
से
कार्य
की
सफलता
की
आशा
और
संभावना
दोगुनी
हो
जाती
है।
इसके
ठीक
विपरीत
यदि
घर
से
निकलते
ही
खोटे,
बदसूरत,
दुखदायी
पदार्थ
जैसे
तेल
बेचता
हुआ
व्यक्ति,
लंगड़ा,
काना,
कपड़े
धोते
हुए
व्यक्ति,
हड्डी,
बिल्ली,
विधवा
स्त्री,
वस्त्रहीन
मनुष्य,
सांप,
भैंस,
सियार,
ग्वाला,
बीमार
कुत्ता,
रोने
की
आवाज,
गंदे
सुअर
आदि
सामने
पड़ें,
तो
इसे
अशुभ
लक्षण
माना
जाता
है।
ऐसी
स्थिति
में
यथासंभव
यात्रा
टाल
देनी
चाहिए।
यदि
यात्रा
पर
जाना
अति
आवश्यक
हो,
तो
इष्ट
देव,
कुल
देव,
पितृ
देव
आदि
का
ध्यान
कर
समुचित
संकल्प
द्वारा
शांति
परिहार
कर
यात्रा
प्रारंभ
करनी
चाहिए।
यात्रा की शुभता के लिए दिशा एवं वार विचार
यात्रा
पर
निकलने
से
पहले
दिशा
और
वार
पर
विचार
अवश्य
करना
चाहिए।
सोमवार
और
शनिवार
को
पूर्व
दिशा,
रविवार
और
शुक्रवार
को
पश्चिम
दिशा,
मंगलवार
और
बुधवार
को
उत्तर
दिशा
और
गुरूवार
को
दक्षिण
की
यात्रा
निषेध
मानी
गई
है।
सामान्यतः
एक
दिन
की
यात्रा
में
दिशा
शूल
नहीं
माना
जाता।
अगर
निषिद्ध
दिशा
में
ही
आवश्यक
कार्य
से
जाना
हो,
तो
यात्रा
के
समय
पर
ध्यान
देना
चाहिए।
रविवार,
गुरूवार
और
शुक्रवार
को
रात
के
समय
यात्रा
पर
निकलने
और
सोमवार,
मंगलवार
एवं
शनिवार
को
दिन
में
यात्रा
शुभ
करने
पर
दिशा
दोष
विशेष
नहीं
रहता।
बुधवार
का
दिशा
दोष
दिन
रात
में
बराबर
रहता
है।
दिशा दोष की शांति
उपर्युक्त बताए गए दिनों में अगर यात्रा अत्यंत आवश्यक हो, तो दिशा दोष की शांति के लिए शास्त्रों में कुछ तरीके बताए गए हैं। शास्त्रों के अनुसार यात्रा पर निकलने से पहले कुछ विशेष वस्तुओं का सेवन, दान या दर्शन करने से दोष की समाप्ति हो जाती है और यात्रा मनोनुकूल फलदायी होती है।
इस संबंध में एक दोहा भी प्रचलित है
रवि
को
पान,
सोम
को
दर्पण
मंगल
को
गुड़
करिए
अर्पण
बुधे
धनिया,
बीफे
जीर,
शक्र
कहे
मोहे
दही
की
पीर।
कहैं
शनि
मैं
अदरख
पावो,
सुख
संपति
निश्चय
घर
लावो।
इसका अर्थ है कि यात्रा पर जाने से पहले रविवार को पान खाकर, सोमवार को दर्पण देखकर, मंगलवार को गुड़ का सेवन कर, बुधवार को खड़ा धनिया खाकर,गुरूवार को जीरा खाकर, शुक्रवार को दही खाकर और शनिवार को अदरक का सेवन कर निकलना चाहिए। ऐसा करने से निश्चित ही सुख, संपत्ति और सफलता घर में आती है। इन नियमों का पालन प्रातः घर से निकलने से पहले रोज भी किया जा सकता है। यह हर तरह से शुभ फलदायी होता है।
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