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जानिए कब होता है राहु आपके लिए अच्छा और कब होता है बुरा?

जन्मकुंडली के प्रथम भाव यानी लग्न में राहु का होना संकेत देता है कि व्यक्ति में अनैतिक कार्य करने की प्रवृत्ति अधिक होगी।

By पं. गजेंद्र शर्मा
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नई दिल्ली। छाया ग्रह राहु और केतु कुंडली में जिस ग्रह के साथ होते हैं या तो उसके प्रभाव को दूषित कर देते हैं या उनके समान व्यवहार करने लगते हैं। एक ओर जहां राहु और केतु के कारण कालसर्प दोष बनता है, वहीं दूसरी ओर अलग-अलग भावों में विभिन्न ग्रहों के साथ राहु की मौजूदगी उस भाव से मिलने वाले फल को प्रभावित करता है।

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आइये देखते हैं किस भाव में राहु क्या फल देता है

लग्न भाव

लग्न भाव

जन्मकुंडली के प्रथम भाव यानी लग्न में राहु का होना संकेत देता है कि व्यक्ति में अनैतिक कार्य करने की प्रवृत्ति अधिक होगी। वह व्यक्ति अत्यधिक काम पिपासु, हर वर्ग की स्त्रियों से जोर-जबर्दस्ती करने वाला, दुष्ट प्रकृति, घोर स्वार्थी, नीचकर्मरत, दुर्बल, कृश शरीर वाला होता है। ऐसा व्यक्ति अधर्मी और धन नष्ट करने वाला होता है। लेकिन यदि राहु मेष, कर्क, सिंह राशि में हो तो स्वर्ण के कारोबार से धन अर्जित करता है।

कुटुंब और परिवार

कुटुंब और परिवार

  • द्वितीय भाव: धन भाव में राहु हो तो व्यक्ति जन्म स्थान से बहुत दूर रहने को मजबूर होता है। इसको संतान सुख कम ही मिलता है, कुटुंब और परिवार का सुख नहीं मिलता। दुष्टभाषी, आजीवन घोर संघर्ष करने वाला। मांसभक्षी और चर्म का कारोबार करने वाला होता है।
  • दृतीय भाव: तीसरे भाव में राहु हो तो जातक योगाभ्यासी, योग की चर्चाओं में भाग लेने वाला, विवेकशील, दृढ़ निश्चयी, धन संपन्न, बिजनेसमैन, पराक्रमी होता है। लेकिन ऐसे जातक के जीवन में शत्रु बहुत होते हैं और शत्रुओं के कारण अक्सर हानि उठानी पड़ती है।
  • चतुर्थ भाव: सुख भाव में राहु की मौजूदगी जीवन को दुखी और कष्टपूर्ण बनाती है। माता का स्नेह नहीं मिलता। क्रूर, दंभी, पेट दर्द से परेशान रहता है। झूठ, प्रपंच, छल करके धन अर्जित करने का प्रयास करता है। ऐसे जातक की दो पत्नियां होती हैं। यदि स्त्री है तो उसके दो पति होते हैं।
  •  कम उम्र में ही संतान

    कम उम्र में ही संतान

    • पंचम भाव: पंचमस्थ राहु होने पर जातक मंदबुद्धि, अल्पज्ञानी, निर्धन होता है। उसे कम उम्र में ही संतान हो जाती है और वह अपनी पैतृक संपत्ति स्वयं नष्ट कर डालता है। कुटिल, षड्यंत्रकारी, बुरे कर्म करने वाला, परस्त्री या परपुरुषगामी होता है। राहु यदि कर्क राशि में हो तो अनेक पुत्र होते हैं।
    • षष्ठम भाव: छठा भाव रोग और शत्रु स्थान होता है। इसमें यदि राहु बैठा है तो जातक स्वस्थ रहता है। शत्रु इसके सामने टिक नहीं पाते, लेकिन जातक हमेशा कमर दर्द से पीडि़त रहता है। ऐसे जातकों की मित्रता नीच वर्ग के लोगों से होने के बावजूद जीवन में कई बड़े कर्म करता है।
    • सप्तम भाव: सातवां घर जीवनसाथी का होता है। जिसके सप्तम भाव में राहु हो वह जीवनसाथी का नाश करता है। व्यापार में निरंतर घाटा उठाता है। भ्रमणशील होता है। कंजूस तथा जननेंद्रियों के रोगों से पीडि़त होता है। पुरुष है तो विधवा स्त्री से संबंध बनाता है। स्त्री है तब परपुरुष से प्रेम रत होती है।
    •  बैठे-बैठे डींगें हांकता रहता है

      बैठे-बैठे डींगें हांकता रहता है

      • अष्टम भाव: मृत्यु स्थान में राहु हो तो व्यक्ति हष्ट-पुष्ट, स्वस्थ होता है। स्वभाव से क्रोधी और आवेश में अपना ही नुकसान कर लेता है। काम वासना इसे बहुत पीडि़त करती है और सेक्स के लिए हमेशा नए की तलाश में रहता है। यदि अष्टम भाव में कोई अन्य बली ग्रह हो तो 60वें वर्ष में जातक की मृत्यु होती है।
      • नवम भाव: धर्म या भाग्य भाव का राहु धर्मात्मा किस्म का जरूर होता है, लेकिन स्वयं की स्वच्छता को लेकर सजग नहीं रहता। इसलिए यह दरिद्र और अल्पसुखी होता है। संतान सुख की कमी होती है। 19 या 29वें वर्ष में पिता के लिए कष्टकारी होता है।
      • दशम भाव: कर्म स्थान यानी दशमस्थ राहु जातक को कामचोर, महाआलसी और वाचाल बनाता है। ऐसा व्यक्ति बैठे-बैठे डींगें हांकता रहता है करता कुछ नहीं। इसके लिए पैसा सबकुछ होता है, लेकिन पैसे कमाने की बारी आने पर पीछे हट जाता है। संतान के लिए ऐसा जातक कष्टकारी होता है।
      • दुष्ट कार्यों से धन कमाने वाला बनाता

        दुष्ट कार्यों से धन कमाने वाला बनाता

        • एकादश भाव: आय स्थान का राहु जातक को एक जगह टिककर बैठने नहीं देता। पैसा कमाने के लिए इसे यहां-वहां दौड़ना पड़ता है। नौकरी में लाभ नहीं, लेकिन स्वयं का काम करे तो लाभ होता है और वह धन-धान्य, भौतिक सुखों की प्राप्ति कर लेता है।
        • द्वादश भाव: खर्च के स्थान में राहु की उपस्थिति जातक को नीच, कपटी, दुष्ट कार्यों से धन कमाने वाला बनाता है। ऐसा व्यक्ति परिवार से दूर रहता है और लोगों की हत्याएं करके धन जुटाने का प्रयास करता है। नेत्र रोग, चर्म रोग से पीडि़त होता है।

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English summary
In Hindu tradition, Rahu is the severed head of an asura called Svarbhānu, that swallows the sun causing eclipses. Ketu is the descending lunar node in Vedic, or Hindu astrology.
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