12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि इतनी महत्वपूर्ण क्यों?
चारों पहरों में शिव का जाप करने से मनोकामनायें सिद्ध होती है। अगर सम्भव हो तो शिवरात्रि के दिन रूद्राभिषेक अवश्य करें।
लखनऊ। महाशिवारात्रि हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। भगवान शिव और उनकी पत्नी पार्वती की पूजा के पावन दिन को विवाह उत्सव के रूप में मनाया जाता है। पुराणों में उल्लेख है कि सृष्टि के आरंभ में फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की मध्य रात्रि में भगवान शंकर का ब्रहमा से रूद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय के बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुये ब्रहांमण्ड को अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से नष्ट कर दिया था। जिस कारण इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया है। कुछ जगह ऐसे भी प्रमाण मिलते है कि इसी दिन भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था।
महाशिवरात्रि सभी व्रतों में सर्वोपरि
पुराणों
के
अनुसार
महाशिवरात्रि
सभी
व्रतों
में
सर्वोपरि
है।
विधि-विधान
से
शिवजी
का
पूजन
और
रात्रि
जागरण
का
विशेष
महत्व
वर्णित
है।
उपवास
से
जहॉ
तन
की
शुद्धि
होती
है,
वहीं
पूजन
व
अर्चना
से
मानसिक
उर्जा
प्राप्त
होती
है
और
रात्रि
जागरण
से
स्वंय
का
आत्म
साक्षात्कार
होता
है।
ईशान
सहिंता
के
अनुसार-फाल्गुन
चतुर्दशी
की
अर्द्धरात्रि
में
भगवान
शंकर
लिंग
के
रूप
में
अवतरति
हुए
थे।
चतुर्दशी
तिथि
के
महानिशीथ
काल
में
महेश्वर
के
निराकार
ब्रह्म स्वरूप प्रतीक शिवलिंग का अविभार्व होने से भी यह
24 फरवरी दिन शुक्रवार को विधिपूर्वक व्रत रखने से तथा शिवपूजन, रूद्राभिषेक, शिवरात्रि व्रत कथा, शिव स्त्रोत का पाठ एंव पंचाक्षरी मन्त्र का पाठ करते हुये रात्रि जागरण करने से जातक को अश्वमेघ यज्ञ के समान फल मिलता है। व्रत के दूसरे दिन यथाशक्ति वस्त्र, भोजन व दक्षिणा ब्राहमण को दान करनी चाहिए।
शिवरात्रि व्रत की महिमा
महाशिवरात्रि व्रत के विषय में ऐसी मान्यता है कि जो भी जातक इस व्रत का विधि-विधान से पालन करता है, उसे लगभग सभी भोगों की प्राप्ति होती है। यह व्रत सभी पापों को क्षय करने वाला होता है। इस व्रत को जो भी जातक 14 वर्षो तक लागातार करता है, उसके बाद उदापन करता है। उसकी हर मनोकामना भगवान शंकर पूर्ण करते है।
चार पहर पूजन मुहूर्त
प्रथम
पहर
हर-सांय
6
बजे
से
रात्रि
9
बजे
तक।
द्वितीय
पहर-रात्रि
9
बजे
से
12
बजे
तक।
तृतीय
पहर
-12
बजे
से
3
बजे
तक।
चतुर्थ
पहर-रात्रि
3
बजे
से
प्रातः
6
बजे
तक।
महाशिवरात्रि व्रत का संकल्प
व्रत का संकल्प सम्वत्, अपना नाम, मास, तिथि, नक्षत्र, ग्रहों की स्थिति का ध्यान, व अपने गोत्र को मन में उच्चारण करते हुये। महाशिवरात्रि के व्रत का संकल्प लेते हुये हाथ में जल, अक्षत व पुष्प आदि लेकर सारी सामग्री शिवलिंग पर चढ़ा दें।
महाशिवरात्रि व्रत सामग्री-
शिवरात्रि पूजन में निम्न सामग्री एकत्रित करनी चाहिए। गंगा जल, दूध, दही, घी, शहद, चावल, रोली, कलावा, जनेउ की जोड़ी, फूल, अक्षत, बिल्व पत्र, धतूरा, शमी पत्र, आक का पुष्प, दूर्वा, धूप, दीप, चन्दन, नैवेद्य आदि।
महाशिवरात्रि व्रत की विधि
प्रातःकाल स्नान-ध्यान करके मन में भगवान शंकर नाम लेकर व्रत का संकल्प करें। ईशान कोण में अपना मुख करके भगवना शिव का विधिवत पूजन करके भस्म का तिलक लगायें। इस व्रत में चारों पहर पूजन किया जाता है। प्रत्येक पहर में आरती व ऊॅ नमः शिवाय अथवा शिवाय नमः का जाप करना चाहिए। अगर शिव मंदिर में जाप सम्भव न हो तो अपने घर में भी कर सकते है। चारों पहरों में शिव का जाप करने से मनोकामनायें सिद्ध होती है। अगर सम्भव हो तो शिवरात्रि के दिन रूद्राभिषेक अवश्य करें।