जानिए शंखनाद क्यों महत्वपूर्ण है हर शुभ कार्य में?
नई दिल्ली।शंख की गूंजती हुई, गहरी और देर तक बजने वाली ध्वनि से कौन परिचित नहीं है। दूर से आती शंख की आवाज हर श्रद्धालु को यह बता देती है कि कहीं कोई शुभ कार्य हो रहा है। हिंदू धर्मशास्त्र में पूजा-पाठ, उत्सव, हवन, युद्ध, विजय, आगमन, विवाह, राज्याभिषेक जैसे हर शुभ कार्य में शंख बजाना आवश्यक माना जाता है।
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मंदिरों में सुबह-शाम आरती के समय शंख बजाना अनिवार्य नियम है। शंखनाद के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। दुर्गा या काली पूजा तो शंखनाद के बिना संपन्न मानी ही नहीं जाती। ऐसा क्या है शंखनाद में, जो इसे हर शुभ कार्य में इतनी महत्ता दी गई है?
आइए, जानते हैं-
आध्यात्मिकता की पराकाष्ठा
भारत में धर्म और नित्य दैनिक जीवन के सभी नियमों का आधार वेद हैं। वेदोें में बताए गए आचरण को अपनाकर ही भारत और हिंदू धर्म ने आध्यात्मिकता की पराकाष्ठा को जीवन में उतारा है। ऐसा माना गया है कि ज्ञान के अभाव में यूं ही भटक रहे मनुष्य को जीवन की सही राह दिखाने के लिए स्वयं देववाणी ने उच्चारित होकर वेदों की रचना करवाई थी। इसीलिए वेदों को अपौरूषेय भी कहा जाता है अर्थात वेदों की रचना किसी व्यक्ति ने नहीं, बल्कि स्वयं भगवान ने की है। ऐसे ही अनेकानेक नियमों के साथ ही वेदों मे शंख बजाने को शुभ कार्यों का अभिन्न अंग बताया गया है।
चौथे कांड के दसवें सूक्त
अथर्ववेद के चौथे कांड के दसवें सूक्त में कहा गया है कि शंख अंतरिक्ष, वायु, ज्योतिमंडल और स्वर्ण से युक्त है। इसकी ध्वनि शत्रुओं को निर्बल करने वाली है। यही हमारा रक्षक है। यह राक्षसों और पिशाचों को वशीभूत करने वाला, अज्ञानता, रोग एवं दरिद्रता को दूर भगाने वाला तथा आयु को बढ़ाने वाला होता है। इस प्रकार देखा जाए तो शंख हर तरह से मानव के लिए कल्याणकारी है। इसमें वे सभी वस्तुएं हैं जो हमारे जीवन को चलायमान रखने और उसकी गुणवत्ता को बढ़ाने में सहायक हैं।
फेफड़े को शक्तिशाली बनाता है
भारतीय धर्मग्रंथों और धर्मज्ञों ने वैसे भी हर वस्तु को गहन शोध के बाद वैज्ञानिक दृष्टि से शुभ फलदायी पाकर ही पूजा में स्थान दिया है। शंख बजाने के भी अपने वैज्ञानिक प्रभाव हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो शंख बजाने का सबसे असरकारी प्रभाव यह है कि यह व्यक्ति के फेफड़े को शक्तिशाली बनाता है। शंख बजाने में फेफड़ों की पूरी शक्ति का प्रयोग करना पड़ता है। इससे फेफड़ों का व्यायाम होता है, जिसके कारण व्यक्ति कभी भी श्वास की बीमारी जैसे दमा या अस्थमा आदि का शिकार नहीं बनता।
गंधक, फास्फोरस और कैल्शियम
दूसरी बात यह है कि शंख में गंधक, फास्फोरस और कैल्शियम अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। जब पूजा आदि कार्यों में शंख में पानी भरकर रखा जाता है, तो शंख के सभी गुण उस पान में आ जाते हैं। पूजा के बाद जब यही पानी श्रद्धालुओं को पीने के लिए दिया जाता है या उन पर छींटा जाता है, तो कम-अधिक रूप में यह सभी गुण उनमें भी पहुंच जाते हैं। स्वास्थ्यवर्द्धक होने के साथ-साथ शंख के पानी में कीटाणुनाशक गुण भी होते है। इसके सेवन से व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली भी मजबूत होती है।
शंख का विशेष महत्वपूर्ण स्थान
वैसे तो शंख की गहरी, तीव्र और गूंजती हुई ध्वनि अपने आप में इतनी पवित्र होती है कि हर मन को अपने स्पर्श से आध्यात्मिकता से भर देती है। स्वयं देवता भी शंख की ध्वनि को इतना पसंद करते हैं कि कई देवताओं के चित्रों में उन्हें हाथ मे शंख लिए चित्रित किया जाता है। श्री कृष्ण का पांचजन्य शंख तो जगतप्रसिद्ध हुआ करता था। एक तरह से शंख धार्मिक शुभता के साथ स्वास्थ्य के लिए भी अति उत्तम है। यही वजह है कि भारतीय हिंदू पूजाघरों में शंख का विशेष महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।