काम बिगाड़ते नहीं बल्कि भाग्य चमकाते भी हैं वक्री ग्रह
कुछ ग्रहों का वक्री होना जीवन में न सिर्फ खुशियां लाता हैं बल्कि व्यक्ति को आर्थिक रूप से मजबूत करता है और उसकी आध्यात्मिक उन्नति होती है।
नई दिल्ली। वक्री ग्रह को लेकर आमतौर पर लोगों के मन में यह धारणा रहती है कि ग्रह वक्री हुआ मतलब जीवन में परेशानियां शुरू। कई अधकचरे ज्ञान वाले ज्योतिषी भी ऐसा ही मानते हैं, लेकिन हकीकत वैसी नहीं है जैसा लोग सोचते हैं। कुछ ग्रहों का वक्री होना जीवन में न सिर्फ खुशियां लाता हैं बल्कि व्यक्ति को आर्थिक रूप से मजबूत करता है और उसकी आध्यात्मिक उन्नति होती है। पाश्चात्य देशों के ज्योतिषियों में भी वक्री ग्रह को लेकर कुछ इसी तरह की धारणाएं हैं।
ग्रहों का वक्री होना क्या होता है?
ग्रहों के वक्री होने से तात्पर्य उनका उल्टा चलने से लगाया जाता है लेकिन यह सही नहीं है। कोई भी ग्रह अपने परिभ्रमण पथ पर कभी उल्टा या पीछे की ओर नहीं चलता। हम सभी जानते हैं सूर्य के चारों ओर प्रत्येक ग्रह अपने ऑर्बिट या कक्षा में अंडाकार पथ पर घूमता रहता है। सभी ग्रहों की एक निश्चित गति भी होती है। वे उसी के अनुसार पथ पर चलते रहते हैं। यह प्राकृतिक नियम है कि कोई भी ग्रह जब सूर्य या पृथ्वी से तुलनात्मक निकट आ जाता है तो उसकी गति तेज हो जाती है और जब दूर रहता है तो उसकी गति धीमी हो जाती है। ग्रंथों के अनुसार जब कोई ग्रह अपनी तेज गति के कारण किसी अन्य ग्रह को पीछे छोड़ देता है तो उसे अतिचारी कहा जाता है। जब कोई ग्रह अपनी धीमी गति के कारण पीछे की ओर खिसकता प्रतीत होता है तो उसे वक्री कहते हैं। और जब वह ग्रह वापस आगे बढ़ता हुआ प्रतीत होने लगता है तो उसे मार्गी कहा जाता है। कभी-कभी कोई ग्रह कुछ समय के लिए स्थिर प्रतीत होता है तो उसे अस्त कहा जाता है। सूर्य और चंद्र कभी वक्री नहीं होते।
भास्कराचार्य ने ग्रहों की आठ प्रकार की गतियां मानी हैं। सूर्यसिद्धांत के द्वितीय अध्याय में उन्होंने लिखा है-
वक्रानुवक्रा
कुटिला
मंदा
मंदतरा
समा।
तथा
शीघ्रतरा
शीघ्रा
ग्रहाणामष्टधा
गति।।
तत्रातिशीघ्र
शीघ््राारंय
मंदा
मंदतरा
समा।
ऋज्वीति
पंचधाज्ञेया
या
वक्रा
सानुवक्रगा।।
अर्थात्- वक्र, अनुवक्र, कुटिल, मंद, मंदतरा, सम, शीघ्र, शीघ्रतर। इनमें प्रथम तीन वक्री कहे जाते हैं क्योंकि इनमें ग्रह उल्टा चलता दिखाई देता है जबकि अन्य में सीधा चलता दिखाई पड़ता है।
अब समझते हैं कौन-सा वक्री ग्रह लाभ देगा और कौन नुकसान
भारतीय
ज्योतिष
में
वक्री
ग्रह
पर
अनेक
ग्रंथ
रचे
गए
हैं,
लेकिन
विदेशों
में
भी
वक्री
ग्रहों
पर
कुछ
कम
शोध
नहीं
हुए।
अनेक
विदेशी
विद्वानों
ने
वक्री
ग्रहों
पर
शोध
करने
के
बाद
भारतीय
विद्वानों
के
मत
से
सहमति
जताई
है।
विदेशों
में
वक्री
ग्रहों
के
साथ
गोचर
में
चल
रहे
ग्रहों
को
जोड़कर
सटीक
भविष्य
कथन
किया
जाता
है।
मंगल
मंगल का वक्री होना व्यक्ति के वैवाहिक जीवन, यौन सुख पर सबसे अधिक असर डालता है। चूंकि मंगल पुरुषत्व का प्रतिनिधि ग्रह है इसलिए यह व्यक्ति के ताकत, शक्ति, उत्साह, स्त्रियों के प्रति आकर्षण, झुकाव, संभोग की शक्ति एवं विवाह के प्रति रूझान के बारे में कथन देता है। जब मंगल वक्री होता है तब पुरुष सगाई, विवाह या अपने जीवनसाथी के प्रति गलत निर्णय ले बैठते हैं बाद में जीवनभर पछताते रहते हैं। यदि किसी स्त्री की कुंडली में मंगल वक्री है तथा गोचर में भी वह वक्री हो तो उस स्त्री की विवाह के प्रति, यौन संबंधों के प्रति इच्छाएं पूरी तरह खत्म हो जाती है। वह इन सब चीजों को बकवास मानने लगती है। यहां तक देखा गया है कि वक्री मंगल की स्थिति में महिलाएं विवाह की पूर्व रात्रि में ही भाग जाती हैं। वक्री मंगल के प्रभाव से व्यक्ति झूठे मुकदमों, पारिवारिक कलह में उलझ जाता है।
बुध
बुध
का
संबंध
बौद्धिक
क्षमता,
विचार,
निर्णय
लेने
की
क्षमता,
लेखन,
व्यापार
आदि
से
होता
है।
इसलिए
बुध
जब
वक्री
हो
तो
व्यक्ति
को
शांति
से
काम
लेना
चाहिए।
इस
दौरान
अति
उत्साह
में
आकर
कोई
निर्णय
नहीं
लेना
चाहिए।
क्योंकि
वक्री
बुध
अक्सर
गलत
निर्णय
करवा
बैठता
है।
इसलिए
जो
काम
जैसा
चल
रहा
होता
है,
उसे
चलने
देना
चाहिए।
वक्री
बुध
के
समय
में
कोई
नया
कार्य
प्रारंभ
न
करें।
अनुबंध
या
ठेकेदारी
में
नए
कार्य
हाथ
में
न
लें,
वरना
घाटा
उठाना
पड़ता
है।
स्त्रियों
के
गोचर
में
वक्री
बुध
होने
से
वे
परिवार,
समाज,
कार्यस्थल
पर
अपमान
का
सामना
करती
हैं।
उनके
सभी
निर्णय
गलत
साबित
होते
हैं।
इस
कारण
उनकी
तरक्की
भी
बाधित
हो
जाती
है।
यदि
कुंडली
में
बुध
अत्यंत
उच्च
स्थिति
में
हो
तो
वक्री
बुध
लाभ
भी
देता
है।
इस
ग्रह
योग
वालों
को
अचानक
कहीं
से
धन
प्राप्ति
के
योग
बनते
हैं।
बृहस्पति
बृहस्पति
का
वक्री
होना
अत्यंत
शुभ
माना
गया
है।
इससे
व्यक्ति
का
भाग्य
चमकता
है।
बृहस्पति
जिस
भाव
में
वक्री
होता
है
उस
भाव
के
फलादेश
में
अनुकूल
परिवर्तन
आते
हैं।
इस
दौरान
व्यक्ति
अपने
परिवार,
देश,
संतान,
जिम्मेदारियों
और
धर्म
के
प्रति
अधिक
संवेदनशील
और
चिंतित
होकर
शुभ
कार्यों
में
प्रवृत्त
हो
जाता
है।
जब
व्यक्ति
कुंडली
के
द्वितीय
भाव
में
आकर
वक्री
होता
है
तो
अपार
धन-संपदा
प्रदान
करता
है।
सिर
से
कर्ज
का
बोझ
उतर
जाता
है।
धन
संचय
होने
लगता
है।
डूबा
हुआ
पैसा
वापस
मिल
जाता
है।
नौकरीपेशा
व्यक्तियों
को
प्रमोशन
और
वेतनवृद्धि
मिलती
है।
नवम
भाव
में
वक्री
होने
पर
भाग्योदय
होता
है।
द्वादश
स्थान
में
वक्री
होने
पर
व्यक्ति
अपने
जन्म
स्थान
की
ओर
बढ़ता
है
और
संपत्ति
प्राप्त
करता
है।
स्त्रियों
की
कुंडली
में
वक्री
बृहस्पति
हो
तो
उन्हें
विवाह
सुख
की
प्राप्ति
होती
है।
आर्थिक
तरक्की
होती
है।
शुक्र
शुक्र
ग्रह
का
सीधा
संबंध
भोग-विलास,
यौन
सुख
से
होता
है।
शुक्र
के
वक्री
होने
पर
स्त्रियों
के
मन
में
दबी
भावनाएं
बाहर
आने
लगती
हैं।
उनमें
कामुकता
बढ़
जाती
है
और
उनमें
यौन
संबंध
बनाने
भावना
तीव्र
हो
जाती
है।
उस
समय
वे
अपने
पति
या
प्रेमी
से
अधिक
प्यार
पाना
चाहती
हैं।
और
यदि
उन्हें
प्यार
न
मिले
तो
वे
पुरुषों
को
त्यागने
में
जरा
भी
संकोच
नहीं
करती।
पुरुषों
की
कुंडली
में
शुक्र
वक्री
हो
और
गोचर
में
वक्री
हो
तो
उनमें
भी
यौन
इच्छाएं
तीव्र
हो
जाती
हैं।
इस
दौरान
यदि
पुरुषों
को
पत्नी
से
सुख-संतोष
प्राप्त
न
हो
तो
वे
अन्य
स्त्रियों
के
साथ
संसर्ग
करने
लग
जाते
हैं।
इस
दौरान
पुरुष
शराब
का
सेवन
भी
अधिक
करने
लगते
हैं।
शुक्र
जब
वक्री
के
बाद
मार्गी
होता
है
तो
पति-पत्नी
के
बीच
के
मतभेद
तुरंत
मिट
जाते
हैं।
कोर्ट-कचहरी
के
मुकदमों
का
निपटारा
हो
जाता
है
और
टूटे
संबंध
पुनः
जुड़
जाते
हैं।
शनि
शनि
के
वक्रत्व
को
लेकर
भारतीय
और
विदेशी
ज्योतिषियों
में
कुछ
बातों
पर
मतभेद
है।
कुछ
भारतीय
ज्योतिषियों
का
मत
है
कि
शनि
का
वक्री
होना
दुर्घटनाएं,
धन
हानि
करवाता
है।
जबकि
इससे
उलट
विदेशी
विद्वान
मानते
है।
कि
शनि
के
वक्री
होने
पर
व्यक्ति
को
परेशानियों
से
राहत
मिलती
है।
वक्री
शनि
तनाव
व
संघर्षों
में
राहत
देता
है।
ऐसे
समय
में
व्यक्ति
की
सोचने-समझने
की
शक्ति
बढ़
जाती
है
और
वह
अपने
अच्छे-बुरे
कार्यों
का
स्वयं
विश्लेषण
करता
है।
साथ
ही
विद्वानों
का
यह
भी
मानना
है
कि
शनि
सिंह
व
धनु
राशि
में
प्रतिकूल
प्रभाव
देता
है।
वर्तमान में वक्री ग्रह
शनि:
दिनांक
6
अप्रैल
2017
गुरुवार
से
वक्री
शुक्र:
दिनांक
9
अप्रैल
2017
रविवार
से
14
अप्रैल
शुक्रवार
तक
वक्री
बुध:
दिनांक
10
अप्रैल
2017
सोमवार
से
4
मई
गुरुवार
तक
वक्री
पं. गजेंद्र शर्मा