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जानिये ज्योतिष में कैसे होती है उम्र की कैलकुलेशन?

By पं. अनुज के शुक्ल
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इस संसार का सार्वभौमिक सत्य यह है कि जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु होगी। इसके सिवा सबकुछ अर्धसत्य है। मनुष्य दिन-रात मेहनत करके धन का उपार्जन करने में लगा रहता है। लेकिन शायद उसे इस बात ख्याल नहीं रहता है कि कफन में जेब नहीं होती है। हालांकि मौत के बारे में जानना कठिन है किन्तु ज्योतिष विज्ञान की सैद्धान्तिक पद्धति से यदि जातक की कुण्डली सही बनी है तो उसकी आयु का पता लगाया जा सकता है।

आयु की सीमा निर्धारण में मारक ग्रह का भी एक निर्णायक स्थान होता है। मारक ग्रहों के निर्णय के उपरान्त उनमें बल के तरतम्य से क्रम का निर्धारण किया जाता है। और बली माकेश की दशा-अन्तर्दशा एवं योगायु अथवा मध्य-दीर्घायु के वर्षों का जब-तक समन्वय होता है तभी तक वास्तव में आयु मानी जाती है। यदि कोई व्यक्ति यह कहे कि चाहे मैं कुछ भी असावधानी करूं इस अवधि से पूर्व तो मेरी मृत्यु नहीं होगी, यह धारणा नितान्त अतर्क संगत हैं।

आशय यह है कि समस्त आयुर्दाय विचार सामान्य परिस्थितियों में ही लागू होता है। इस प्रसंग एक बात और दृष्टब्य है कि असाधारण परिस्थितियों यथा युद्ध, दंगा, आतंकवाद, भूकम्प, बाढ़, बड़ी दुर्घटना व महामारी आदि में जब एक साथ बहुत से व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है, तब लोग प्रायः यह प्रश्न करते हैं कि क्या सबका मारकेश साथ-साथ ही आया था?

क्या सबकी आयु इतने सूक्ष्म रूप से समान थी कि सबकी मृत्यु एक साथ ही हुई? इस विषय में मेरा विचार है कि जब एक समय में पूरी दुनिया में हजारों लोगों का जन्म हो सकता है तो एक साथ हजारों लोगों की मृत्यु भी सम्भव है।

आयुर्दाय: जिससे जातक की आयु का ज्ञान किया जाता है इसे आयुदार्य कहते हैं।

आयुर्दाय दो प्रकार का होता है-

1. योगज।
2. गणितागत।

गणित द्वारा आयुनिर्णय

गणितद्वारा आयु निकालने पांच पद्धतियां है, जो निम्न प्रकार से हैं -

  • अंशायु-सत्याचार्य के मत से
  • पिण्डायु-मयादि के मत से
  • नैसर्गिक आयु-पराशरी के मत से
  • जीवायु-जीवशर्मा के मत से
  • मिश्रायु-उपरोक्त चारों प्रकारों के मिश्रण एवम् अष्टकवर्ग द्वारा आयु का ज्ञान किया जाता है।

आगे की खबर नीचे की स्लाइडों में..

गणितागत

गणितागत

गणितीय विधियों द्वारा आयु का किया गया ज्ञान सटीक साबित होता है।

योगज

योगज

यानि योगों के द्वारा आयुनिर्णयग्रहों की विशेष परिस्थितियों अर्थात् जन्म कुण्डली में स्थित भाव में ग्रहों एवम् राशियों की स्थिति से जो अनेकानेक योगों का सृजन होता है उससे योगज आयुर्दाय की पुष्टि होती है।

योगों द्वारा आयुनिर्णय

योगों द्वारा आयुनिर्णय

योगज आयु चार प्रकार की होती है-

1-अरिष्ट आयु-अरिष्ट आदि के होने से अल्पायु होना।
2-परम आयु- ग्रहों के योग से दीर्घायु होना।
3-नियत आयु- कुछ विशेष योग जिनसे नियत आयु का ज्ञान होना।
4-अमित आयु- ग्रहों की स्थितियों के कारण अपरिमिति इसके उदाहरण अघालिखित हैं-

'ये पाप लुब्धाश्च चैराश्च देव ब्राम्हण न्दिकाः ।
सर्वा शिनश्च ये तेषाम् काल मरणं ध्रुवम्।।'

वैद्यनाथ

वैद्यनाथ

अर्थात् जो लोग पापी, लोभी, चोर हों एवम् देव ब्राम्हण के निन्दक हों, सब कुछ खाते हों तो उनकी अकाल मृत्यु हो ही जाती है।

अल्पायु योग

अल्पायु योग

बहुमत के आधार पर 32 वर्ष की आयु तक अल्पायु योग के अनतर्गत आता हैं विद्वानों का कथन है कि आठ वर्ष तक आयु का विचार अनावश्यक है, किसी किसी के अनुसार 12 वर्ष के पूर्व आयु का विचार नहीं करना चाहिए। अल्पायु योग निम्नवत् बनते हैं:-

1 वर्ष की आयु

1- यदि चन्द्र लग्न में स्थित हो, पाप ग्रह केन्द्र में हो तथा शुभ ग्रह के साथ न हों तो एक वर्ष के अन्दर मृत्यु होती है।
2- यदि लग्न में बली चन्द्र अथवा सूर्य हो तथा केन्द्र त्रिकोण अथवा अष्टम् में पाप ग्रह हो और यदि सूर्य चन्द्रमा और शुक्र किसी राशि में एक साथ हों तो जातक की आयु 1 वर्ष से कम की होती हैं

8 वर्ष की आयु

8 वर्ष की आयु

1- यदि चन्द्र निर्बल हो और अष्टम् स्थान में पाप ग्रह हों तो जातक की आयु 8 वर्ष की होती है।

2- यदि पंचम् तथाा नवम् भाव में पाप ग्रह स्थित हों 6, 8 में शुभ ग्रह हों एवम् पाॅचवें, नवें भाव पर शुभ ग्रह-दृष्टि न हो जातक की मृत्यु 8वें वर्ष में होती है।

12 वर्ष की आयु

12 वर्ष की आयु

1- सप्तम् स्थान में राहु हो और उस पर शनि, सूर्य आदि पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक की आयु 12 वर्ष की होती है।

2- यदि चन्द्र सिंह राशि में और सूर्य शनि के साथ अष्टम स्थान में हो और उस पर शुक्र की दृष्टि हो तो जातक 12 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है।

25 वर्ष की आयु

25 वर्ष की आयु

यदि शनि द्विस्वभाव राशिगत होकर लग्न में हो एवम् अष्टमेश व द्वादशेश निर्बल हो तो जातक की आयु 25 वर्ष की होती हैं।

मध्यायु योग

मध्यायु योग

(विशेष)

चार वर्ष तक की अवस्था मे बालक की मृत्यु माता के पाप से होती है। चार से आठ वर्ष तक अपने पूर्वार्जित पाप के कारण बालक की मृत्यु होती है।

मध्यायु योग

40 वर्ष से 60 वर्ष पर्यन्त तक की आयु मध्यायु होती है।

40 वर्ष की आयु

40 वर्ष की आयु

1- यदि अष्ठमेश स्थिर राशि गत हो तथाा केन्द्रवर्ती हो एवम् अष्टम् स्थाान पाप दृष्ट हो।

2- यदि अष्टमेश लग्नवर्ती हो एवम् अष्टम स्थान में कोई ग्रह न हो।

60 वर्ष की आयु

60 वर्ष की आयु

1- यदि तृतीयेश बृहस्पति के साथ लग्न में हो और किसी एक केन्द्र में पाप ग्रह कुम्भ राशिगत हो तो जातक ब्रहम्ज्ञानी अथवा योगी होता है तथा 60 वर्ष तक जीता है।

2- यदि अष्टम् स्थान में कोई पाप ग्रह हो, अष्टमेश लग्न में हो तो लग्नेश द्वादश भाव में हो, जातक की आयु 60 वर्ष की होती है।

70 वर्ष की आयु

70 वर्ष की आयु

1- यदि मंगल पंचमस्थ, सूर्य सप्तमस्थ और शनि नीचस्थ (मेष राशि का) हो।
2- चन्द्रमा द्वादश स्थान में हो तथा बृहस्पति बल हीन हो।
3- लग्न नवम अथवा केन्द्र में गुरू हो एवम् अष्टम् स्थान ग्रह शून् हो एवम् लग्न व चन्द्रमा पाप ग्रह से दृष्ट हों तो जातक की आयु 70 वर्ष की होती हैं

पूर्णायु योग-

पूर्णायु योग-

सौम्य खेरान्विते केन्द्रे सशुभे लग्नपे सति।
किंवा जी वेक्षिते तब पूर्णायुः स्यान्नृणां तदा।।

अर्थात गुरू, शुक्र युक्त लग्नेश केन्द्रगत हो या केन्द्रगत लग्नेश गुरू, शुक्र से दृष्ट हो तो जातक पूर्णायु होता है।

ज्योतिष में कैसे होती है उम्र की कैलकुलेशन?

ज्योतिष में कैसे होती है उम्र की कैलकुलेशन?

कर्कोदये शशि गुरू केनद्रगौ बुध भार्गवौ।
शेषास्त्रि लाभरिपुगा अमितायुः प्रदा ग्रहाः।।

ज्योतिष में कैसे होती है उम्र की कैलकुलेशन?

ज्योतिष में कैसे होती है उम्र की कैलकुलेशन?

कर्क लग्न में चन्द्र, गुरू हो बुध, शुक्र केन्द्रगत हों शेष ग्रह त्रिषडाय में स्थित हों तो जातक अभितायु होता है।

क्रूरास्तिलाभ रिपुगाः केन्द्र कोण गताः शुभाः।
निधने शुभ राशिस्थे दिब्यायुः स्यान्नरस्तदा ।।

अर्थात पाप ग्रह त्रिषाडाय में और शुभ ग्रह केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हो और अष्टम भाव शुभ ग्रह की राशि में हो तो जातक दिब्य आयु को प्राप्त करने वाला होता हैं।

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English summary
How to calculate age with the help of astrology.
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