केवल मंगल की वजह से नहीं होता मांगलिक दोष!
[पं. अनुज कुमार शुक्ल] आम तौर पर यह धारणा है कि जब कुंडली के किसी विशेष स्थान पर मंगल ग्रह होता है तभी मांगलिक दोष होता है। जबकि मंगल के अलावा चंद्र और शुक्र भी मांगलिक दोष तय करते हैं। ग्रहों के स्थान का अंदाजा आप ऊपर तस्वीर में कुंडली के प्रारूप को देख कर लगा सकते हैं।
जिस प्रकार लग्न से उक्त पाँच स्थानों में मंगल होने पर मंगलिक योग या मांगलिक दोष होता है, उसी प्रकार चन्द्र, लग्न एवं शुक्र से भी उक्त पाँच स्थानों में मंगल होने पर भी मांगलिक दोष होता है। कारण यह है कि चन्द्र लग्न का भी लग्न के समान ही महत्व माना गया है, शुक्र विवाह एवं दाम्पत्य सुख का प्रतिनिधि ग्रह होता है।
यदि लग्न, चन्द्र लग्न या शुक्र से प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश स्थान में मंगल होने पर भी मांगलिक योग होता है।
दक्षिण भारत के ज्योतिष ग्रंथों में लग्न के स्थान पर द्वितीय भाव का ग्रहण किया गया है। अतः वहाँ लग्न आदि से द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश स्थानों में मंगल होने पर कुज दोष (मांगलिक दोष) माना जाता है, जैसा कि केरल शास्त्र में कहा गया है -
धने
व्यये
च
पातले
जामित्रे
चाष्टमें
कुजे।
कन्या
भर्तुर्विनाशाय
भर्ता
कन्या
विनाशकः।।
कई ग्रहों की वजह से होता है मांगलिक दोष
ज्योतिष शास्त्र में मंगल, शनि सूर्य राहु एवं केतु पाप ग्रह माना गया है ये ग्रह नैसर्गिक रूप से पापी हैं तथा अपनी दृष्टि एवं युति द्वारा किसी भी फल को नष्ट कर सकते हैं। मांगलिक योग में प्रमुख योग है कि लग्न, चतुर्थ, अष्टम, स्थान पर पाप प्रभाव पड़ने से भोगोपभोग के साधन रतिसुख, अनिष्ट का प्रभाव एवं क्रय शक्ति का ह्रास होता है। जो अन्ततोगत्वा दाम्पत्य सुख को नष्ट कर देता है।
जिस प्रकार उक्त पाँच स्थानों में मंगल होने पर दाम्पत्य सुख को हानि पहुँचने की संभावना बनती है। ठीक उसी प्रकार इन पाँच स्थानों में शनि, सूर्य, राहु और केतु होने पर भी दाम्पत्य सुख में हानि पहुँच सकती है। यही कारण है कि ज्योतिष शास्त्र में मनीषी आचार्यों ने मंगल, शनि, सूर्य, राहु और केतु इन पांचों ग्रहों को मांगलिक योग कारक माना है।