हेल्दी लाइफ चाहते हैं तो करें रुद्र अवतार भैरव की पूजा
भैरव को शिव का रुद्र अवतार माना गया है। तंत्र साधना में भैरव के आठ रूप भी अधिक लोकप्रिय हैं- 1.असितांग भैरव, 2. रु-रु भैरव, 3. चण्ड भैरव, 4. क्रोधोन्मत्त भैरव, 5. भयंकर भैरव, 6. कपाली भैरव, 7. भीषण भैरव तथा 8. संहार भैरव। हालांकि प्रमुख रूप से काल भैरव और बटुब भैरव की साधना ही प्रचलन में है। इनका ही ज्यादा महत्व माना गया है। आगम रहस्य में दस बटुकों का विवरण है। भैरव का सबसे सौम्य रूप बटुक भैरव और उग्र रूप है काल भैरव।
देखिये कैसी-कैसी खतरनाक पूजाएं करते हैं तांत्रिक
‘महा-काल-भैरव' मृत्यु के देवता हैं। ‘स्वर्णाकर्षण-भैरव' को धन-धान्य और संपत्ति का अधिष्ठाता माना जाता है, तो ‘बाल-भैरव' की आराधना बालक के रूप में की जाती है। सद्-गृहस्थ प्रायः बटुक भैरव की उपासना ही करते हैं, जबकि श्मशान साधक काल-भैरव की। भैरव शब्द का विग्रह करके समझा जाय तो "भ" अर्थात विश्व का भरण करने वाला, "र" अर्थात विश्व में रमण करने वाला और "व" अर्थात वमन यानी कि सृष्टि का पालन पोषण करने वाला। इन दायित्वों का निर्वहन करने के कारण इनका नाम भैरव हुआ।
अब इनके नाम के पहले जुडने वाले शब्द "बटुक" के बारे में जाना जाय
"बटुक" का अर्थ होता है छोटी उम्र का बालक। अर्थात आठ वर्ष से कम उम्र के बालक को "बटुक" कहा जाता है। वर्णन मिलता है कि महर्षि दधीचि भगवान शिव के परम भक्त थे। उन्होंने अपने पुत्र का नाम शिवदर्शन रखा लेकिन भगवान शिव नें उसका एक नाम और रखा जो था "बटुक"। अर्थात यह नाम भगवान शिव को प्रिय है। इसीलिए बटुक भैरव को भगवान शिव का बालरूप माना जाता है। बटुक भैरवजी तुरंत ही प्रसन्न होने वाले दुर्गा के पुत्र हैं। बटुक भैरव की साधना से व्यक्ति अपने जीवन में सांसारिक बाधाओं को दूर कर सांसारिक लाभ उठा सकता है।
हर समस्या का रामबाण उपाय है गायत्री मंत्र...
बटुक भैरव जी के बारे में और बातें करते हैं नीचे की स्लाइडों में...
साधना का मंत्र
।।ॐ
ह्रीं
वां
बटुकाये
क्षौं
क्षौं
आपदुद्धाराणाये
कुरु
कुरु
बटुकाये
ह्रीं
बटुकाये
स्वाहा।।
उक्त
मंत्र
की
प्रतिदिन
11
माला
21
मंगल
तक
जप
करें।
मंत्र
साधना
के
बाद
अपराध-क्षमापन
स्तोत्र
का
पाठ
करें।
भैरव
की
पूजा
में
श्री
बटुक
भैरव
अष्टोत्तर
शत-नामावली
का
पाठ
भी
करना
चाहिए।
साधना यंत्र
श्री बटुक भैरव का यंत्र लाकर उसे साधना के स्थान पर भैरवजी के चित्र के समीप रखें। दोनों को लाल वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर यथास्थिति में रखें। चित्र या यंत्र के सामने हाल, फूल, थोड़े काले उड़द चढ़ाकर उनकी विधिवत पूजा करके लड्डू का भोग लगाएं।
साधना समय
इस
साधना
को
किसी
भी
मंगलवार
या
मंगल
विशेष
अष्टमी
के
दिन
करना
चाहिए
शाम
7
से
10
बजे
के
बीच।
साधना
चेतावनी
:
साधना
के
दौरान
खान-पान
शुद्ध
रखें।
सहवास
से
दूर
रहें।
वाणी
की
शुद्धता
रखें
और
किसी
भी
कीमत
पर
क्रोध
न
करें।
यह
साधना
किसी
गुरु
से
अच्छे
से
जानकर
ही
करें।
साधना नियम व सावधानी
1.
यदि
आप
भैरव
साधना
किसी
मनोकामना
के
लिए
कर
रहे
हैं
तो
अपनी
मनोकामना
का
संकल्प
बोलें
और
फिर
साधना
शुरू
करें।
2.
यह
साधना
दक्षिण
दिशा
में
मुख
करके
की
जाती
है।
3.
रुद्राक्ष
या
हकीक
की
माला
से
मंत्र
जप
किया
जाता
है।
4.
भैरव
की
साधना
रात्रिकाल
में
ही
करें।
5.
भैरव
पूजा
में
केवल
तेल
के
दीपक
का
ही
उपयोग
करना
चाहिए।
साधना नियम व सावधानी
6.
साधक
लाल
या
काले
वस्त्र
धारण
करें।
7.
हर
मंगलवार
को
लड्डू
के
भोग
को
पूजन-साधना
के
बाद
कुत्तों
को
खिला
दें
और
नया
भोग
रख
दें।
8.
भैरव
को
अर्पित
नैवेद्य
को
पूजा
के
बाद
उसी
स्थान
पर
ग्रहण
करना
चाहिए।
9.
भैरव
की
पूजा
में
दैनिक
नैवेद्य
दिनों
के
अनुसार
किया
जाता
है,
जैसे
रविवार
को
चावल-दूध
की
खीर,
सोमवार
को
मोतीचूर
के
लड्डू,
मंगलवार
को
घी-गुड़
अथवा
गुड़
से
बनी
लापसी
या
लड्डू,
बुधवार
को
दही-बूरा,
गुरुवार
को
बेसन
के
लड्डू,
शुक्रवार
को
भुने
हुए
चने,
शनिवार
को
तले
हुए
पापड़,
उड़द
के
पकौड़े
या
जलेबी
का
भोग
लगाया
जाता
है।
भैरव नाम जाप से कई रोगों से मुक्ति
भगवान भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहाँ शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ता है। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है। साथ ही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं। भैरव के नाम जप मात्र से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति मिलती है। वे संतान को लंबी उम्र प्रदान करते है। अगर आप भूत-प्रेत बाधा, तांत्रिक क्रियाओं से परेशान है, तो आप शनिवार या मंगलवार कभी भी अपने घर में भैरव पाठ का वाचन कराने से समस्त कष्टों और परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं।