अक्षय तृतीया के बारे में वो बातें जो आप नहीं जानते
[पं. अनुज के शुक्ल] भारतीय सनातन धर्म में ऋतुओं के अनुसार व्रत और त्यौहारों का सजृन किया गया है। व्रत और त्यौहार हमारे समाज को दान, पुण्य, परोपकार, सहयोग और सहानुभूति से जोड़ते है। जिससे हम असहाय, गरीब, वृद्धजनों, अपाहिजों की सेवा करके कुछ पुण्य कर्म आर्जित करके अपने जीवन को सुगमता तथा सार्थकता के पथ पर ले जा सकें।
ज्येष्ठ मास में पथ पैर चलना वर्जित कहा गया है क्योंकि इस मास गर्मी अपने चरमोत्कर्ष पर होती है। ज्येष्ठ महीना शुरू होने से पूर्व ही वैशाख शुक्ल पक्ष को अक्षय तृतीया का पर्व रखा है, जिसमें छाता, दही, जूता-चप्पल, जल का घड़ा, सत्तू, खरबूजा, तरबूज, बेल का सरबत, मीठा जल, हाथ वाले पंखे, टोपी, सुराही आदि वस्तुओं का दान करने का विधान रखा गया है।
अतः हम तपती गर्मी आने से पूर्व स्वास्थ्य के अनुकूल इन वस्तुओं को सेंवन करें एंव दान करें। वैशाख के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहते है। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन जो भी पुण्य कर्म किये जाते है, उनका फल अक्षय होता है।
खरीददारी करने का शुभ मुहूर्त- 13 अप्रैल मध्यान्ह 12:47 बजे तक।
स्लाइडर में अक्षय तृतीया के बारे में आठ महत्वपूर्ण तथ्य-
बहुत शुभ
अक्षय तृतीय यदि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन पड़े तो इसका फल कई गुना अधिक हो जाता है। तृतीया मध्यान्ह से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो बहुत श्रेष्ठ माना जाता है।
भगवान विष्णु का अवतरण
भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है। सतयुग और त्रेता युग का प्रारम्भ भी इसी तिथि को हुआ था। भगवान विष्णु ने नर-नारायण और परशुराम का अवतरण अक्षय तुतीया को ही लिया था।
ब्रह्मा जी के पुत्र का अविर्भाव
ब्रह्रमा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अविर्भाव भी इसी तिथि को हुआ था इसीलिए इसको अक्षय तिथि कहते है।
बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं
इसी तिथि को बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजन किया जाता है और लक्ष्मी-नारायण के दर्शन किये जाते है। उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल बद्रीनाथ के कपाट भी इसी तिथि को खोले जाते है।
वृंदावन में चरण पूजन
वृन्दावन स्थित श्री बांके बिहारी जी के मन्दिर में केवल इसी दिन विग्रह के चरण दर्शन होते है अन्यथा बांके बिहारी पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते है।
इसी दिन खत्म हुआ था महाभारत युद्ध
अक्षय तृतीया 21 घटी 21 पल की होती है। इसी तिथि को महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था। द्वापर युग का समापन भी इसी तिथि को हुआ था।
बहुत शुभ
इस तिथि को बिना पंचाग देखे कोई शुभ व मांगलिक कार्य जैसे- विवाह, गुह प्रवेश, वस्त्र-आभूषण खरीदना, वाहन एंव घर आदि खरीदा जा सकता है।
चार धाम यात्रा
यह तिथि वसन्त ऋतु के अन्त और ग्रीष्म ऋतु के प्रारम्भ का संकेत है। चारो धाम की यात्रा भी इसी तिथि से शुरू हो रही है।