अक्षय तृतीया पर सोना खरीदना महज एक फैशन और कुछ नहीं
वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहते है। अक्षय तृतीया का शाब्दिक अर्थ है कि जिस तिथि का कभी क्षय न हो अथवा कभी नाश न हो, जो अविनाशी हो। भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, ऐसी मान्यता है कि इसी तिथि से सतयुग और त्रेतायुग का प्रारम्भ हुआ था। इस तिथि को अगर कृतिका या रोहिणी नक्षत्र हो और बुधवार या सोमवार दिन हो तो प्रशस्त माना गया है।
कोई भी शुभ कार्य करने के लिए पवित्र मानी जाने वाली अक्षय तृतीया पर्व हिन्दू श्रद्धालु उपवास और दान आदि कर्म फल को अक्षय मानते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु वैशाख मास की अक्षय तृतीया को अवतरित हुये थे। भगवान विष्णु को गरीबों की सहायता करना एंव सहयोग करना बेहद प्रिय है। वर्तमान समय में अक्षय तृतीया के दिन सोना, चांदी एंव आभूषण खरीदना एक तरह का फैशन बन गया है। यह चलन सिर्फ व्यावसायिकता का प्रतीक है और कुछ नहीं। इस दिन सोना चांदी खरीदने से कुछ नहीं होता।
इसका कोई शास्त्रीय आधार या उल्लेख वर्णित नहीं है। अक्षय तृतीया का पर्व ग्रीष्म ऋतृ में पड़ता है, इसलिए इस पर्व पर ऐसी वस्तुओं का दान करना चाहिए। जो गर्मी में उपयोगी एंव राहत प्रदान करने वाली हो।
इस वर्ष यह पर्व 24 अप्रैल दिन मंगलवार और रोहिणी नक्षत्र में पड़ रहा है। इस दिन दान एंव उपवास करने हजार गुना फल मिलता है। अक्षय तृतीया के दिन महालक्ष्मी की साधना विशेष लाभकारी एंव फलदायक सिद्ध होती है।
खास बातें
1-
जिन
जातकों
के
कार्यो
अड़चने
आ
रही
हैं,
या
फिर
जिनके
व्यापार
में
लगातर
हानि
हो
रही
है।
2-
अधिक
परिश्रम
के
बावजूद
भी
धन
नहीं
टिकता
है
एंव
घर
में
अशान्ति
बनी
रहती
है।
3-
संतान
मनोकूल
कार्य
न
करें
तथा
विरोधी
चॅहुओर
से
परेशान
कर
रहें
।
4-
जिन
महिलाओं
के
वैवाहिक
सुख
में
तनाव
की
स्थिति
बनी
रहती
है।
तो ऐसे में अक्षय तृतीया का व्रत रखकर और गर्मी में निम्न वस्तुओं जैसे- छाता, दही, जूता-चप्पल, जल का घड़ा, सत्तू, खरबूजा, तरबूज, बेल का सरबत, मीठा जल, हाथ वाले पंखे, टोपी, सुराही आदि वस्तुओं का दान करने से उपरोक्त समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
’’शुध्यन्ति दानः सन्तुष्टया द्रवयाणि’’ अर्थात धन दान और संतोष से विशुद्ध होता है।