वास्तु के अनुसार पूजा कक्ष
उदाहरण के लिये- सूर्य की ऊष्मा ग्रीष्म ऋतु में प्रतिकूल तथा शीत ऋतु में सुखद अनुभव देती है। जिसके कारण ग्रीष्म ऋतु में हम अधिक से अधिक सूर्य की ऊष्मा के सीधे प्रभाव से बचने का प्रयास करते रहते है। जबकि शीतकाल में उसी सीधी ऊष्मा को ग्रहण काने का प्रयास करते है। इसके लिये हम अपने निवास स्थान आदि में उसी के अनुरूप भवन निर्माण करते है। प्रकृति द्वारा उपलब्ध ऊर्जायें मुख्य रूप से दो प्रकार के प्रभाव डालती है। 1- सकारात्मक उर्जा, 2- नकारात्मक ऊर्जा । ये दोंनों प्रकार की ऊर्जायें हमें सुख व दुःख की अनुभूति कराती है।
कैसा हो आपका पूजन कक्ष-
1-
पूजा
गृह
भवन
में
ईशान
कोण
(पूर्व-उत्तर)
अथवा
उसके
समीप
उत्तर
या
पूर्व
दिशा
में
बनायें।
2-
पूजा
कक्ष
शयन
कक्ष
अथवा
रसोई
घर
में
न
बनायें।
3-
पूजा
गृह
की
दीवारों
व
फर्श
का
रंग
हल्का
सफेद,
पीला
या
हल्का
नीला
होना
चाहिये।
4-
पूजन
गृह
में
हवन
कुण्ड
आग्नेय
कोण,
(पूर्व-दक्षिण)
में
होना
चाहिये।
5-
पूजा
करते
समय
मुख
ईशान
कोण,
पूर्व
या
उत्तर
की
ओर
होना
चाहिये।
6-
पूजा
घर
में
युद्ध
के
चित्र
या
पशु-पक्षी
के
चित्र
लगाना
वास्तु
के
अनुसार
उचित
नहीं
है।
7-
पूजा
गृह
में
कोई
भी
मूर्ति
4
इन्च
से
अधिक
लम्बी
न
हो
तथा
मूर्तियां
ठीक
दरवाजे
के
सामने
नहीं
होनी
चाहिये।
8-
घर
में
झाड़ू
व
कूड़ेदान
आदि
भवन
के
ईशान
कोण
एंव
पूजा
गृह
के
निकट
नहीं
हेना
चाहिये।
9-
पूजा
घर
की
सफाई
हेतु
झाड़ू
व
पोछा
अलग
होना
चाहिये।
10-
हनुमान
जी
की
मूर्ति
नैऋत्य
कोण
(दक्षिण-पश्चिम)
में
स्थापित
करें।