जानिये फेंगसुई के बारे में रोचक तथ्य
फेंगसुई शब्द वायुतत्व और जलतत्व का समन्वय है। जिसकी सहसहायता से प्राकृतिक शक्ति ,ची, को अधिक अनुकूल बनाया जा सकता है। ची को चीन की आत्मा कहा जाता है। अतः ची को समझे बगैर फेंगसुई की विधा में प्रवेश नहीं किया जा सकता है। चीनी विद्वानों ने प्रकृति द्वारा प्रदत्त इन शक्तियों को मानव जीवन की दैनिक शैली और भाग्य पक्ष के साथ यिन और यांग नामक दो उर्जाओं के प्रवाह से जोड़ते है।
उनके
द्वारा
यिन
और
यांग
दो
प्रमुख
शक्तियाॅ
समग्र
सृष्टि
का
संचालन
कर
रही
है।
इन
दोनों
के
समन्वय
से
ही
शक्ति
का
संचार
होता
है।
इन
दोनों
उर्जाओं
यिन-यांग
के
सकारात्मक
संचार
से
प्रकृति
द्वारा
प्रदत्त
सौभाग्यवर्द्धक
उर्जा
'ची"
का
सजृन
होता
है।
जिसे
प्राप्त
करना
मानव
जीवन
के
लिए
अपरिहार्य
है।
फेंगसुई
क्या
है?
और
भरतीय
वास्तुशास्त्र
का
इससे
क्या
सम्बन्ध
है?
यह
एक
विचारणीय
प्रश्न
है।
चीनी फेंगसुई के लगभग सभी सिद्धान्त भारतीय वास्तुशास्त्र से मिलते-जुलते है। सिर्फ दो सिद्धान्त एकदम विपरीत है। 1- चीन में दक्षिण दिशा को शुभ माना जाता है जबकि भारत में यह दिशा अशुभ मानी जाती है। 2- चीन में आग्नेय कोण में जल संग्रह, फव्वारा, पौधे लगाना एंव मछली घर रखना अत्यन्त सुखदायी माना जाता है, जबकि भारत में आग्नेय कोण में जल से समबन्धित वस्तुयें रखना अहितकारी माना जाता है।
फेंगसुई के ये दो सिद्धान्त भारतीय विचारधारा के भिन्न माने जाते है, परन्तु ऐसा दोनों देशों की भिन्न-भिन्न जलवायु के कारण प्रतीत होता है। भारत में उत्तर दिशा में हिमालय है, वहीं से पवित्रता की द्योतक महानदी गंगा का प्रार्दुभाव है। गंगा का जल भारत के लिए अमृत तुल्य और विश्व के लिए अजूबा है। उत्तर दिशा में हिमालय है जिसके शिखर पर शिव जी विराजमान है, अतः भारत के लिए उत्तर दिशा शुभ है। भारत में अधिकतर पूर्वी और उत्तरी हवायें चलती है, जो सुखद एंव अनुकूल होती है, इसलिए भारत में अधिकतर घरों में खिड़की और दरवाजे पूर्व एंव उत्तर दिशा में रखते है।
चीन की जलवायु भारत से भिन्न है। चीन में दक्षिण दिशा में मंगोलिया प्रदेश है, जहां से पीले व लाल रंग की धूल भरी आधियां व तुफान आते रहते है, इसी कारण चीन में उत्तर दिशा की ओर दरवाजा व खिड़कियाॅ नहीं रखते है। उत्तर दिशा में खिड़की व दरवाजा रखने से हानिकारक धूल व मिट्टी घर में प्रवेश कर जायेगी। इसलिए वे उत्तर व पूर्व को को अधिकतर बन्द रखते है तथा दक्षिण-पूर्व को शुभ मानते है, क्योंकि दक्षिण-पूर्व से उनको स्वच्छ वायु एंव अधिक प्रकाश मिलता है। अतः प्रत्येक देश व प्रदेश का वास्तु वहां की जलवायु को समझकर करना चाहिए।