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अंग्रेजी भाषा पर स्वामी विवेकानंद का था बेहतरीन कमांड लेकिन मिले थे काफी कम नंबर

'द मॉडर्न मॉन्क: व्हाट विवेकानंद मीन्स टू अस टूडे' किताब में लिखा है कि एक संभ्रात परिवार में पैदा होने के कारण विवेकानंद अच्छी से अच्छी शिक्षा हासिल कर पाए थे।

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नई दिल्ली। अपनी नई सोच और विचारों से केवल भारत के ही नहीं बल्कि दुनिया को लोगों के दिलों में जगह बनाने वाले अध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद और अंग्रेजी का रिश्ता भी अपनेआप में काफी अनोखा है, उनकी इस भाषा पर पकड़ से दुनिया प्रभावित थी लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्वामी जी को अंग्रेजी में काफी कम अंक मिले थे।

एक वेश्या के कारण बदले थे स्वामी विवेकानंद के विचार...एक वेश्या के कारण बदले थे स्वामी विवेकानंद के विचार...

इस बात का खुलासा 'द मॉडर्न मॉन्क: व्हाट विवेकानंद मीन्स टू अस टूडे' किताब में किया गया है। किताब में लिखा है कि एक संभ्रात परिवार में पैदा होने के कारण वह अच्छी से अच्छी शिक्षा हासिल कर पाए थे और इसी वजह से वो ब्रितानी प्रवाह के साथ अंग्रेजी बोल और लिख सकते थे। लेकिन पढ़ाई के दौरान उन्हें अंग्रेजी में काफी कम अंक मिले थे।

तीनों ही परीक्षाओं में 47 प्रतिशत अंक

उन्होंने विश्वविद्यालय की तीन परीक्षाएं दीं - एंट्रेंस एग्जाम, फर्स्ट आर्ट्स स्टैंडर्ड और बैचलर ऑफ आर्ट्स, इन तीनों ही परीक्षाओं में उन्हें 47 प्रतिशत अंक मिले थे, एफए में 46 प्रतिशत और बीए में 56 प्रतिशत अंक मिले थे। गणित और संस्कृत जैसे विषयों में भी उनके अंक औसत ही रहे।

'उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये'

हैरानी हुई ना कि इतना विद्दान इंसान नंबरों के मामले में औसत कैसे रह गया, 'उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये' जैसे विचारों से लोगों को प्रभावित करने वाले विवेकानंद ज्ञान के अथाह सागर थे।

यूरोप-अमेरिका लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे

25 साल की अवस्था में विवेकानंद ने गेरूआ वस्त्र धारण कर लिया था। सन्‌ 1893 में शिकागो (अमरीका) में विश्व धर्म परिषद् सम्मेलन चल रहा था । स्वामी विवेकानन्द उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुंचे थे। यूरोप-अमेरिका लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे। वहां लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानन्द को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले।

साइक्लॉनिक हिन्दू

लेकिन एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला। उस परिषद् में उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गये। वो तीन साल अमेरिका में रहे और वहां के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान की। इसलिए वहां की मीडिया ने उन्हें साइक्लॉनिक हिन्दू का नाम दिया था।

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English summary
Swami Vivekananda's English language skills captivated thousands but his marks in the subject in the three university examinations he took were far from impressive, says a new book on the 19th century philosopher-monk.
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