क्या है दही-हांडी और जन्माष्टमी का रिश्ता?
बेंगलुरू। इस महीने की 25 तारीख को जन्माष्टमी का त्योहार है, जिसके लिए पूरे देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरह की तैयारियां चल रही हैं। कहीं इस दिन रासलीला का आयोजन होगा तो कहीं इस दिन झांकियां सजायी जायेंगी लेकिन महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में इस दिन के लिए दही जमायी जा रही है और हांडी तैयार की जा रही है, क्योंकि लड्डू गोपाल के जन्मदिवस पर इन जगहों पर दही-हांडी की प्रतियोगिता होती है।
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आखिर क्या है कान्हा जी और दही-हांडी का कनेक्शन..जानते हैं नीचे की स्लाइडों में..
क्या है परंपरा?
दही-हांडी प्रतियोगिता के तहत लड़कों का एक समूह पिरामिड बनाता है, जिसमें एक लड़का ऊपर चढ़कर ऊंचाई पर लटकी हांडी, जिसमें की दही होता है, को फोड़ता है। ये लड़के गोविंदा बनकर इस खेल में भाग लेते हैं। इस दौरान काफी गीत-संगीत होता है और पिरामिड वाले लड़कों पर आस-पास के लोग काफी पानी फेंकते हैं।जिससे दही-हांडी तक पहुंचना आसान नहीं होता। जो लड़का हांडी फोड़ता है वो ही विजयी कहलाता है।
कान्हा जी को करते हैं याद
माना जाता है कि कान्हा जी को दही पसंद थी और वो हांडी से चुरा-चुरा कर दही खाते थे इसलिए दही-हांडी खेल उन्हें समर्पित है इसलिए उनके जन्मदिन पर उन्हें इसके जरिये याद किया जाता है।
पानी फेंकना
दही हांडी फोड़ने वाले लड़कों पर आस-पास के लोग पानी डालकर रोकते हैं और इस तरह से माना जाता है कि वो गोकुलवासी हैं, जिनकी मटकियां भगवान श्रीकृष्ण तोड़ा करते थे।
मेहनत की जीत
दही-हांडी प्रतियोगिता आसान नहीं है, इस दौरान अगर इंसान गिरे तो काफी चोट लगती है, लेकिन ये खेल ये दर्शाने की कोशिश की है अगर आपका लक्ष्य निश्चित हो और आप मेहनत और हिम्मत दिखायें तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। यही उपदेश भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था।
जो जीता वो ही सिकंदर
गोविंदा वो ही होता है जो अंत तक हार नहीं मानता, इसलिए ये खेल होता है, ताकि लोग ये समझें कि किसी भी चीज को पाने के लिए निरंतर मेहनत करनी होती है जो मौके का लाभ उठाता है और प्रयत्न करता है वो ही जीतता है।