Must Read: आपसे बहुत कुछ कहते हैं देवताओं के वाहन
नई दिल्ली। हमारे पौराणिक ग्रंथों में हर देवता के साथ उसके वाहन का उल्लेख भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि देवी-देवता के गुणों के अनुरूप ही उनके वाहनों का निर्धारण किया गया है। यही कारण है कि सभी भगवानों के वाहन अलग-अलग हैं। मुख्य देवताओं के वाहनों के नाम से तो हम सभी परिचित हैं। उनके चुनाव का आधार क्या है?
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वे किस बात का प्रतीक हैं और वे हमें क्या शिक्षा देते हैं, आइए जानते हैं...
अस्थिर मन का प्रतीक है मूषक
सबसे पहले बात करते हैं प्रथम पूज्य भगवान गणेश की। गणेश जी का वाहन मूषक यानी चूहा है। चूहे को अस्थिरता का प्रतीक माना जाता है। एक जगह ना टिकने की अपनी प्रवृत्ति के कारण सांकेतिक रूप से चूहे को मानव मन का प्रतीक माना जाता है। भगवान गणेश बुद्धि, विवेक और एकाग्रता के प्रतीक हैं। उनकी सवारी के लिए चूहे का चयन यह बताता है कि मानव का मन प्रकृति से चंचल होता है, वहीं आत्मज्ञान से इस अस्थिरता को नियंत्रित किया जा सकता है। जब चंचल मन ज्ञान से नियंत्रित हो एकाग्रता धारण कर लेता है, तभी मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सत्वगुणों का प्रतिनिधि है शिव का वाहन
भगवान शिव का वाहन है वृषराज नंदी। नंदी धर्म का प्रतीक हैं। नंदी का सफेद रंग सत्वगुण का प्रतीक है और उनके चार पैर धर्म के चार स्तम्भ दया, दान, तप और शौच माने गए हैं। जीवन में सात्विक गुणों का पालन करते हुए धर्म के इन चारों स्तंभों को अपने जीवन का आधार बना लेने पर कोई भी साधक शिवत्व को प्राप्त कर सकता है।
लक्ष्मी का वाहन उल्लू
धन की अधिष्ठात्री देवी का वाहन है उल्लू। यह बात सभी जानते हैं कि उल्लू सूरज के प्रकाश में देख नहीं पाता। उल्लू को आध्यात्मिक रूप से दिवांधता का प्रतीक माना जाता है। उल्लू को लक्ष्मी का वाहन बनाने का सांसारिक जीवन में बड़ा ही सूक्ष्म संकेत है। जो व्यक्ति धन के पीछे पागल रहता है, बिना सोचे-समझे केवल धन के पीछे भागता है, वह जीवन में आत्मज्ञान रूपी सूर्य को नहीं देख पड़ता। उल्लू के समान ही वह अपनी सोचने-समझने की विवेक पूर्ण शक्ति और प्रतिष्ठा खो देता है।
यह अर्थ है दुर्गा के वाहन का
संसार को अपने शरण में लेने वाली मां दुर्गा का वाहन है सिंह। सिंह बल और पौरूष का प्रतीक है। मां दुर्गा के उपासक शक्तिशाली होते हैं और अपने शत्रुओं का दमन करने में समर्थ होते हैं। यही कारण है कि मां दुर्गा के भक्तों में क्रोध और हिंसा के गुण देखने को मिलते हैं। सिंह पर सवार दुर्गा मां यह संदेश देती हैं कि हिंसा और बल समयानुसार आवश्यक हैं, लेकिन वे तभी सार्थक हैं, जब ममता और कोमलता को अपने साथ लेकर चलें, नहीं तो ये गुण संसार के विध्वंस का कारण बन सकते हैं।
वेद का प्रतीक गरूड़
संसार के कर्ता-धर्ता भगवान विष्णु का वाहन गरूड़ है। गरूड़ वेद का प्रतीक है, उसमें उड़ने का असीम सामर्थ्य होता है और उसकी दूरदृष्टि अद्वितीय होती है। गरूड़ यह संदेश देते हैं कि ज्ञान का आधार बनाकर, विवेक पूर्ण गहन दृष्टि से कार्य कर व्यक्ति जीवन की ऊंचाइयों को पा सकता है।
यम का वाहन भैंसा
मृत्यु के देवता यमराज का वाहन है भैंसा। इसे प्रेत का प्रतीक माना जाता है इसीलिए भैंसे का दर्शन भी अशुभ माना जाता है। भैंसा यमराज के समान ही भयावहता का अनुभव कराता है। भैंसा व्यक्ति के मन में भय उत्पन्न करता है कि यदि सात्विक धर्म का मार्ग ना अपनाया, तो एक दिन तो मृत्यु से सामना होना ही है और अपने कार्यों के अनुरूप अशुभ कार्यों का परिणाम मिलना भी तय है।
तो देखा आपने, हमारे ईष्ट देवों के वाहन किस तरह हमें जीवन से जुड़े सूक्ष्म सत्यों से परिचित कराते हैं। इनके संकेतों को समझकर यदि इनके अनुरूप ही आचरण कर लिया जाए तो कोई भी व्यक्ति आध्यात्मिकता के उच्च स्तर पर पहुंच सकता है।