आखिर क्यों और कैसे हुआ मां दुर्गा का जन्म?
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार दुर्गा अपने पूर्व जन्म में प्रजापति रक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं। जब दुर्गा का नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में सभी देवताओं को भाग लेने हेतु आमंत्रण भेजा, किन्तु भगवान शंकर को आमंत्रण नहीं भेजा।सती के अपने पिता का यज्ञ देखने और वहां जाकर परिवार के सदस्यों से मिलने का आग्रह करते देख भगवान शंकर ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी।
सती के पिता ने भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा
सती
ने
पिता
के
घर
पहुंच
कर
देखा
कि
कोई
भी
उनसे
आदर
और
प्रेम
से
बातचीत
नहीं
कर
रहा
है।
उन्होंने
देखा
कि
वहां
भगवान
शंकर
के
प्रति
तिरस्कार
का
भाव
भरा
हुआ
है।
पिता
दक्ष
ने
भी
भगवान
के
प्रति
अपमानजनक
वचन
कहे।
यह
सब
देख
कर
सती
का
मन
ग्लानि
और
क्रोध
से
संतप्त
हो
उठा।
वह
अपने
पिता
का
अपमान
न
सह
सकीं
और
उन्होंने
अपने
आपको
यज्ञ
में
जला
कर
भस्म
कर
लिया।
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अगले जन्म में सती ने नव दुर्गा का रूप धारण कर जन्म लिया। जब देव और दानव युद्ध में देवतागण परास्त हो गये तो उन्होंने आदि शक्ति का आवाहन किया और एक एक करके उपरोक्त नौ दुर्गाओं ने युद्ध भूमि में उतरकर अपनी रणनीति से धरती और स्वर्ग लोक में छाए हुए दानवों का संहार किया।
मां दुर्गा ने दानवों का संहार किया
इनकी इस अपार शक्तिको स्थायी रूप देने के लिए देवताओं ने धरती पर चैत्र और आश्विन मास में नवरात्रों में इन्हीं देवियों कीपूजा-अर्चना करने का प्रावधान किया। वैदिक युग की यही परम्परा आज भी बरकरार है। साल में रबी और खरीफ की फसलें कट जाने के बाद अन्न का पहला भोग नवरात्रों में इन्हीं देवियों के नाम से अर्पित किया जाता है। आदिशक्तिदुर्गा के इन नौ स्वरूपों को प्रतिपदा से लेकर नवमी तक देवी के मण्डपों में क्रमवार पूजा जाता है।