श्रवण कुमार के मन में भी आया था माता-पिता को छोड़ने का विचार
एक बार श्रवण कुमार के मन में भी अपने माता-पिता के लिए हिंसक और अनुचित विचार आ गए थे।
नई दिल्ली। भारतीय पौराणिक कहानियों में श्रवण कुमार के नाम और कथा से कौन परिचित नहीं है। आज भी योग्य बेटों के लिए श्रवण कुमार ही सर्वश्रेष्ठ संज्ञा मानी जाती है। हर माता-पिता की इच्छा होती है कि उनका बेटा श्रवण कुमार जैसा निकले।
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लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक बार श्रवण कुमार के मन में भी अपने माता-पिता के लिए हिंसक और अनुचित विचार आ गए थे। यहां तक कि वे अपने नेत्रहीन माता-पिता को जंगल में अकेला छोड़कर जाने को उद्यत हो गए थे!
चलिए, पूरी कथा सुनते हैं...
बात उस समय की है, जब श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर तीर्थाटन के लिए निकले थे। यात्रा के दौरान श्रवण कुमार गुजरात पहुंचे और विश्राम के लिए दाहोद गांव की एक नदी के किनारे रूके थे। विश्राम के क्षणों में श्रवण कुमार के मन में अचानक पाप विचारों ने आकार लेना शुरू कर दिया। वे सोचने लगे कि क्या मुझे सारा जीवन माता-पिता की सेवा में ही बिताना पड़ेगा?
माता-पिता मेरे जीवन पर बोझ हो गए हैं
स्वच्छंद जीवन का सुख मुझे कब मिलेगा? माता-पिता मेरे जीवन पर बोझ हो गए हैं। मुझे तुरंत ही उन्हें यहीं जंगल में छोड़कर अपना जीवन अपनी इच्छानुसार जीने के लिए निकल पड़ना चाहिए। ऐसा सोचकर श्रवण कुमार तुरंत अपने माता-पिता के पास पहुंचे और उन्हें अपने विचारों से अवगत कराया।
हम वृद्ध हो गए हैं और तुम पर बोझ बने हुए हैं
माता- पिता ने श्रवण के निर्णय पर पलभर विचार किया और तुरंत ही बिना विचलित हुए कहा कि बेटा, तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो। हम वृद्ध हो गए हैं और तुम पर बोझ बने हुए हैं। हमारे लिए कब तक अपने जीवन के सुखों से दूर रहोगे? हमारी चिंता मत करो, हमारा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है। जाने से पहले बस एक काम कर दो, हमें नदी के पार छोड़ दो। हम वहीं अपना शेष जीवन काट लेंगे।
श्रवण कुमार उन्हें लेकर नदी पार करने लगे
पिता की बात मानकर श्रवण कुमार उन्हें लेकर नदी पार करने लगे। नदी के मध्य में पहुंचते ही उनका मन परिवर्तित होने लगा। श्रवण कुमार ने सोचा कि मैं ही तो अपने माता-पिता का एकमात्र सहारा हूं। मैं उन्हें अकेला इस जंगल में कैसे छोड़ सकता हूं? उनकी सेवा में जीवन लगाकर ही मुझे जीवन का सच्चा संतोष मिलेगा। अपने विचारों में उलझते हुए श्रवण कुमार ने नदी पार कर कांवड़ उतारी और माता-पिता के चरण पकड़कर कहा- मुझे क्षमा करें। मेरे मन में ना जाने कैसे अपवित्र विचारों का जन्म हो गया था। मैं आपके बिना जीवित नहीं रह सकता। मैं कभी भी आपको छोड़कर नहीं जाउंगा।
बेटा, इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं
श्रवण की बात सुनकर माता-पिता ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा कि बेटा, इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। यह सब प्रभाव उस भूमि की अपवित्रता का था। वह शापित भूमि थी। वहां के अशुद्ध प्रभाव से ही तुम्हारे मन में कुविचार उत्पन्न हुए थे। पर हम तो तुम्हारा मन जानते है, इसलिए हमने नदी पार कराने को कहा। ये तपस्वियों के चरणों के स्पर्श से पावन हुई भूमि है। यहां आते ही तुम्हारा मन वापस निर्मल हो गया।
भूमि की अपवित्रता के प्रभाव का ज्ञान हुआ
माता- पिता से श्रवण कुमार को भूमि की अपवित्रता के प्रभाव का ज्ञान हुआ और उनके मन से ग्लानिभाव चला गया। वे वापस पहले की तरह अपने माता- पिता की सेवा करने लगे।