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देवशयनी एकादशी मतलब भगवान जी का स्लीपिंग टाइम..

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आँचल प्रवीण

स्वतंत्र पत्रकार
आंचल पत्रकारिता एवं जनसंचार में पोस्ट ग्रेजुएट हैं, आंचल को ब्लोगिंग के अलावा फोटोग्राफी का शौक है, वे नियमित रूप से राष्ट्रीय और अंतरष्ट्रीय मुद्दों पर लिखती रहती हैं।

दुनिया की रक्षा करने वाले भगवान भी कभी थक जाते होंगे। उनको भी तो आराम की ज़रूरत है। जगत के पालनहार जिस रोज़ निद्रा में जाते हैं उसे देव शयनी एकादशी कहते हैं। देवशयनी एकादशी आषाढ़ की शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहा जाता है। इसे 'पद्मनाभा' तथा 'हरिशयनी' एकादशी भी कहा जाता है।

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कब होती है ये एकादशी

पुराणों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए बलि के द्वार पर पाताल लोक में निवास करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। धार्मिक दृष्टि से यह चार मास भगवान विष्णु का निद्रा काल माना जाता है।

तपस्वी भ्रमण नहीं करते

इन दिनों में तपस्वी भ्रमण नहीं करते, वे एक ही स्थान पर रहकर तपस्या (चातुर्मास) करते हैं। इन दिनों केवल ब्रज की यात्रा की जा सकती है, क्योंकि इन चार महीनों में पृथ्वी के समस्त तीर्थ ब्रज में आकर निवास करते हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस एकादशी का विशेष माहात्म्य लिखा है।

कथा कहती है कि

सत युग में मान्धाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करते थे। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी| एक बार लगातार तीन वर्ष तक बारिश न होने के कारण भयंकर अकाल पड़ा। प्रजा परेशान हो गई। धर्म पक्ष के यज्ञ, हवन पिण्डदान, कथा, व्रत सभी में कमी हो गई। प्रजा ने राजा के दरबार में जाकर अपनी कही।

प्रजा की भलाई हेतु पूरा प्रयत्न

राजा ने कहा- 'आप लोगों का कष्ट भारी है। मैं प्रजा की भलाई हेतु पूरा प्रयत्न करूंगा।' राजा इस स्थिति को लेकर पहले से ही दुखी थे। वे सोचने लगे कि आख़िर मैंने ऐसा कौन-सा पाप-कर्म किया है, जिसका दण्ड मुझे इस रूप में मिल रहा है?'

मुक्ति पाने का कोई साधन

फिर प्रजा की दुहाई तथा कष्ट को सहन न करने के कारण, इस कष्ट से मुक्ति पाने का कोई साधन करने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए। जंगल में घूमते हुए-करते एक दिन वे ब्रह्मा जी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे और उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। मुनि ने उन्हें आशीर्वाद देकर कुशल क्षेम पूछा। फिर जंगल में विचरने व अपने आश्रम में आने का अभिप्राय जानना चाहा।

मेरा संशय दूर कीजिए

तब राजा ने हाथ जोड़कर कहा-'महात्मन! सब प्रकार से धर्म का पालन करते हुए भी मैं अपने राज्य की दुर्दशा देख रहा हूं। मैं इसका कारण नहीं जानता। आख़िर क्यों ऐसा हो रहा है, कृपया आप इसका समाधान कर मेरा संशय दूर कीजिए।'

युगों में श्रेष्ठ है सतयुग

यह सुनकर अंगिरा ऋषि ने कहा- 'हे राजन! यह सतयुग सब युगों में क्षेष्ठ और उत्तम माना गया है। इसमें छोटे से पाप का भी बड़ा भारी फल मिलता है। इसमें लोग ब्रह्मा की उपासना करते हैं। इसमें ब्राह्मणों के अतिरिक्त अन्य किसी को तप करने का अधिकार नहीं था, जबकि आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है।

शूद्र तपस्वी को मारने से ही पाप की शांति

यही कारण है कि आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। जब तक उसकी जीवन लीला समाप्त नहीं होगी, तब तक यह आकाल समाप्त नही होगा। उस शूद्र तपस्वी को मारने से ही पाप की शांति होगी।'

निरपराध का वध अधर्म है

लेकिन राजा का मन एक निरपराध को मारने को तैयार नहीं हुआ। राजा ने उस निरपराध तपस्वी को मारना उचित न जानकर ऋषि से दूसरा उपाय पूछा। तब ऋषि ने कहा-' आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी (पद्मा एकादशी या हरिशयनी एकादशी) का विधिपूर्वक व्रत करो। इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही वर्षा होगी।' यह सुनकर राजा मान्धाता वापस लौट आया और उसने चारों वर्णों सहित पद्मा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलाधार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से सम्पन्न हो गया।

वैज्ञानिक आधार भी है

यदि सामान्य तौर पर देखें तो देव शयनी एकादशी जून से जुलाई के महीने में होती है जो एक मानसून मन्थ है। मानसून के सीजन में शादी ब्याह वगैरह नहीं किये जाते क्योंकि ये बिमारियों का मौसम होता है। साथ ही तीर्थ यात्रायें भी वर्जित है क्योंकि अमूमन सभी तीर्थ स्थल पहाड़ी इलाकों में है और इस मौसम में पहाड़ी इलाके की सैर करना एक जोखिम भरा काम है।

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English summary
Ekadashi is the eleventh lunar day (tithi) of the shukla (bright) or krishna (dark) paksha (fortnight) of every lunar month in the Hindu calendar (Panchang).
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