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जानिए शनिवार व्रत की कथा, महत्व और विधि, बनेंगे बिगड़े काम

By पं. गजेंद्र शर्मा
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नई दिल्ली। धर्मग्रंथों में शनिवार का दिन अपने नाम के अनुरूप ही शनिदेव को समर्पित है। शनिदेव हिंदू पुराणों में अपने क्रोध के लिए विख्यात हैं।

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ऐसा माना जाता है कि जिस पर वे कुपित हो जाते हैं, उसके दुर्दिन शुरू हो जाते हैं। संसार में हर समस्या का समाधान है, पर शनिदेव के क्रोध से पार पाने का कोई उपाय नहीं है। यही कारण है कि भक्ति से अधिक भय के कारण सारा संसार शनिदेव को पूजता है।

शनिदेव से इस तरह भय रखने की बात कहां से संसार में फैली, उनकी कथा से जानते हैं-

एक समय ब्रह्मांड के नवग्रहों में आपस में विवाद हो गया। वे सभी तय करना चाहते थे कि उनमें सबसे बड़ा कौन है? इस विवाद का हल निकालने वे सभी देवराज इंद्र के पास पहुंचे। इंद्र ने विवाद से बचने के लिए नवग्रहों से कहा कि धरती पर उज्जैन में विक्रमादित्य नाम का राजा है, जो सदा न्याय करता है। वही आपके विवाद का निर्णय कर सकता है। इंद्र की बात मान नवग्रह राजा विक्रमादित्य के पास अपना मामला लेकर पहुंचे। राजा जानते थे कि वे जिसे छोटा बताएंगे, वही कुपित हो जाएगा, पर वे न्याय की राह नहीं छोड़ना चाहते थे।

लोहे का सिंहासन सबसे बाद में था, जो शनिदेव का था

राजा ने नव धातुओं के नौ सिंहासन बनाए और हर ग्रह को उनके अनुरूप क्रमशः स्थान ग्रहण करने को कहा। इस तरह लोहे का सिंहासन सबसे बाद में था, जो शनिदेव का था। इस तरह शनिदेव को सभी ग्रहों में अंतिम स्थान मिला। इससे शनिदेव राजा पर कुपित हो गए और अपना समय आने पर विक्रमादित्य को दुख देने की चेतावनी देकर चले गए।

शनि की साढ़े साती

शनि की साढ़े साती

समय के साथ राजा विक्रमादित्य की कुंडली में शनि की साढ़े साती आई। इसी समय शनिदेव घोड़े के सौदागर बन कर राजा के पास आए। राजा विक्रमादित्य एक घोड़ा पसंद कर जैसे ही उसकी सवारी करने लगे, वह राजा को लेकर जंगल में भाग गया और गायब हो गया। जंगल में भटककर राजा किसी नए देश जा पहुंचे। वहां एक शहर में एक सेठ से बात करने लगे। सेठ के यहां उनके पहुंचते ही खूब सामान बिका, तो वह प्रसन्न होकर राजा को भोजन कराने घर ले गया। भोजन करते हुए राजा ने देखा कि एक खूंटी पर हार लटका है और वह खंूटी ही उसे निगल रही है। राजा के भोजन करने पर सेठ ने खूंटी पर हार ना पाया, तो उसे अपने राजा के यहां कैद करवा दिया। राजा ने चोरी के आरोप में विक्रमादित्य के हाथ कटवा दिए।

 किस ग्रह में मेरे जितना प्रकोप है?

किस ग्रह में मेरे जितना प्रकोप है?

इसके बाद विकलांग राजा को एक तेली अपने घर ले गया और कोल्हू के बैलों को हांकने का काम दे दिया। इस तरह साढ़े सात साल बीत गए और एक रात शनि की महादशा समाप्त होते ही विक्रमादित्य ने ऐसा राग छेड़ा कि राज्य की राजकुमारी ने उनसे विवाह का प्रण ले लिया। लाख समझाने पर भी राजकुमारी ना मानी तो राजा ने विकलांग विक्रमादित्य से अपनी राजकुमारी का विवाह कर दिया। रात्रि में शनिदेव ने विक्रमादित्य के सपने में आकर कहा कि तुमने मुझे सबसे छोटा ठहराया था ना। अब देखो मेरा ताप और बताओ कि किस ग्रह में मेरे जितना प्रकोप है?

राजा ने शनिदेव से माफी मांगी

राजा ने शनिदेव से माफी मांगी

राजा ने शनिदेव से माफी मांगी, शनिदेव ने उन्हें माफ कर हाथ लौटा दिए। सुबह सब तरफ राजा विक्रमादित्य और शनिदेव की कथा की चर्चा होने लगी। विक्रमादित्य की जानकारी मिलते ही वह व्यापारी भी माफी मांगने आया और उन्हें फिर भोजन का निमंत्रण दे गया। राजा जब उसके यहां भोजन कर रहे थे तो उसी खूंटी ने सबके सामने हार वापस उगल दिया। इस तरह सभी के सामने स्पष्ट हो गया कि राजा ने चोरी नहीं की थी। व्यापारी ने राजा से कई बार माफी मांगी और अपनी कन्या का विवाह उनके साथ कर दिया। राजा विक्रमादित्य अपनी दोनों रानियों और ढेर सारे उपहारों के साथ उज्जैन वापस आए और राजकार्य संभाल लिया।

शनिवार का व्रत

शनिवार का व्रत

इसके साथ ही उन्होंने घोषणा की कि सभी ग्रहों के राजा सूर्यदेव अवश्य हैं लेकिन कर्मफलदाता शनिदेव हैं। उनके अनादर से मेरी इतनी दुर्दशा हुई। इससे बचने के लिए राज्य में सभी जन शनिदेव को प्रसन्न रखने के लिए शनिवार का व्रत रखेंगे। शनिदेव की कृपा से राजा ने पूरे राज्य समेत सुखपूर्वक जीवन व्यतीत किया।

व्रत की विधि

व्रत की विधि

शनिवार के अधिपति देव शनि हैं और उन्हें काले तिल, काला वस्त्र, तेल, उड़द अत्यंत प्रिय हैं। इसीलिए शनिदेव की पूजा में इन वस्तुओं का उपयोग अवश्य करना चाहिए। शनि की महादशा का सामना कर रहे व्यक्तियों को शनिवार का व्रत करना ही चाहिए। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर शनिदेव का स्मरण करें। इस दिन तेल या लोहे से बनी वस्तुएं खरीदने से बचें क्योंकि इनमें शनि का वास माना जाता है। इसीलिए पूजा का सामान भी एक दिन पहले ही खरीद लें। भोजन एक ही बार करें। इस दिन शनि स्तोत्र का पाठ करना शुभ फलदायी रहता है। इस दिन चीटियों को आटा डालना भी विशेष फलदायी होता है। शनिवार के व्रत में पूजा के बाद शनिदेव की कथा अवश्य सुनें और दिन भर उनका स्मरण करते रहें, तो शनिदेव बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं और कष्टों का शीघ्र निवारण करते हैं।

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English summary
Fasting on Saturday is considered highly beneficial and the most significant of all the weekly vrats
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