बहन-भाई के प्रेम और त्याग की कहानी कहता है 'भाई-दूज'
धनतेेरस से शुरू हुआ दिवाली का पर्व भाई-दूज पर आकर खत्म होता है।
लखनऊ। पांचदिवसीय दिवाली के त्योहार का अंतिम पड़ाव भाई-दूज होता है। बहन-भाई के प्रेम के प्रतीक इस पर्व को लेकर काफी कथाएं प्रचलित हैं लेकिन सबसे ज्यादा जिस कहानी की चर्चा होती है वो है यम और यमी की कहानी।
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मान्यता है कि यमी यमराज की बहन हैं जिनसे यमराज काफी प्रेम और स्नेह रखते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को एक बार जब यमराज यमी के पास पहुंचे तो यमी ने अपने भाई यमराज की खूब सेवा सत्कार की।
यम और यमी की कहानी
बहन के सत्कार से यमराज काफी प्रसन्न हुए और उनसे कहा कि बोलो बहन क्या वरदान चाहिए? भाई के ऐसा कहने पर यमी बोली की जो प्राणी यमुना नदी के जल में स्नान करे वह यमपुरी न जाए। यमी की मांग को सुनकर यमराज चिंतित हो गये।
जो भाई बहन के घर भोजन करे
यमी भाई की मनोदशा को समझकर यमराज से बोली अगर आप इस वरदान को देने में सक्षम नहीं हैं तो यह वरदान दीजिए कि आज के दिन जो भाई बहन के घर भोजन करे और मथुरा के विश्राम घट पर यमुना के जल में स्नान करे उस व्यक्ति को यमलोक नहीं जाना पड़े।
व्यक्ति को यमलोक नहीं जाना पड़े
तब से ही यह प्रथा बन गई कि आज के दिन भाई अपनी बहनों के घर जाते हैं और उनसे टिका कराते हैं ताकि उनकी आयु बढ़े। प्रेम और त्याग का यह पर्व उत्तर भारत में बहुत ज्यादा लोकप्रिय है। इस दिन हर भाई के मस्तक पर बहनें टीका करती हैं और उनकी लंबी आयु और तरक्की की कामना करती हैं।
प्रथा
इस दिन बहनेंं अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती हैं और जमकर गालियां देती हैं, जिससे की यम बाबा को बहनों पर गुस्सा आए और वो उनके भाई की उम्र लंबी करें।