दमादम मस्त कलंदर...की दरगाह हुई खून से लाल, जानिए खास बातें
दुनिया भर में मशहूर लाल शाहबाज कलंदर की दरगाह के बारे में मान्यता है कि यहीं पर महान सूफी कवि अमीर खुसरो ने 'दमादम मस्त कलंदर' गीत लिखा था।
बेंगलुरु। एक बार फिर से पाकिस्तान में दहशतगर्तों ने खून की होली खेली है, जिस पाक लाल शाहबाज कलंदर की दरगाह पर लोग मत्था टेककर अपनों के लिए दुआएं मांगते थे, वहीं पर आतंक और नफरत फैलाने वाले लोगों ने मासूमों को मारकर नापाक काम किया है।
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सैकड़ों लोगों की मौत
आपको बता दें कि सिंध के सहवान में लाल शहबाज कलंदर सूफी दरगाह पर आईएसआईएस के आत्मघाती हमलावर द्वारा खुद को उड़ा लेने से हुए विस्फोट में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई है।
— Ankur Srivastava (@aankursri) February 17, 2017 |
'दमादम मस्त कलंदर' गीत
आपको बता दें कि दुनिया भर में मशहूर लाल शाहबाज कलंदर की दरगाह के बारे में मान्यता है कि यहीं पर महान सूफी कवि अमीर खुसरो ने 'दमादम मस्त कलंदर' गीत लिखा था।
'झूलेलाल कलंदर' गीत
जिसे बाद में बाबा बुल्ले शाह ने अपने तरीके से लिखा था और ये 'झूलेलाल कलंदर' गीत के नाम से मशहूर हुआ। इस गीत की लोकप्रियता का आलम ये है कि इस गीत को हर दौर के गायकों ने अपने अंदाज में गाया और लोकप्रिय बनाया।
सैयद मुहम्मद उस्मान मरवंदी (1177-1275)
सूफी दार्शनिक और संत लाल शाहबाज कलंदर का असली नाम सैयद मुहम्मद उस्मान मरवंदी (1177-1275) था, कहा जाता है कि वह लाल वस्त्र धारण करते थे, इसलिए उनके नाम के साथ लाल जोड़ दिया गया।
बाबा कलंदर
बाबा कलंदर के पूूूर्वज बगदाद से ताल्लुक रखते थे लेकिन बाद में ईरान के मशद में जाकर बस गए, बाबा कलंदर गजवनी और गौरी वंशों के समकालीन थे और सहवान में ही उनका निधन हुआ था।
लाल शाहबाज कलंदर दरगाह
पाकिस्तान के सिंध प्रांत सहवान में लाल शाहबाज कलंदर दरगाह का निर्माण 1356 में कराया गया था। इस मजार पर सिंध प्रांत में रहने वाले हिंदू भी जाते हैं।