कविता: हे माँ, तू मेरा सहारा है, तू मेरा किनारा है..
तुझसे ही सीखा मेने चलना फिरना,
तुमने ही न्यौछावर किया मुझपे प्यार का झरना,
जीवन में जो भी किया उसे सराहा तुमने,
मेरी हर भूल को अपनाया तुमने,
हे
माँ,
तू
मेरा
सहारा
है,
तू
मेरा
किनारा
है,
तू
है
मेरे
जीवन
का
आधार,
तू
नहीं
तो
जीवन
निराला
है,
हे
माँ,
जब
सुनता
हु
तेरे
पैरो
की
आवाज़,
स्तब्ध
सा
रहकर
करता
हु
इंतज़ार,
सोचता
हु
तू
आएगी,
आकर
मुझे
उठाएगी,
अपने
लब्जो
से
चुम्बन
कर
सीने
से
लगाएगी,
हे माँ,
कभी
कभी
न
जाने
क्यु,
लगा
रहता
है
एक
डर,
एक
सन्नाटा,
एक
गिरती
हुई
आवाज़,
न
जाने
मुझे
कहा
ले
जाती
है,
महसूस
होता
है
मुझे
अकेलापन,
खो
जाता
हु
सुनसान
राहों
में,
फिर
न
जाने
क्यु
दिल
रो
उठता
है,
दबा
जाता
हु
मैं
मेरे
अन्दर,
न
जाने
किस
अँधेरे
में
खो
जाता
हूँ,
जहाँ
न
कोई
दिया
होता
है,
न
कोई
रौशनी,
जीवन
न
जाने
क्यों
निरर्थक
लगने
लगता
है,
न
मंजिल
रहती
है,
न
मंजिल
का
रास्ता,
ख्वाबों
में
उलझकर,
न
जाने
किस
असमंझस
में
पड़
जाता
हूँ,
लेकिन
तब
आती
है
एक
आवाज़,
न
जाने
कहाँ
से,
न
जाने
किस
किनारे
से,
न
जाने
क्या
उदेश्य
है,
हाँ
माँ,
वों
होती
है
तेरी
आवाज़,
जो
मुझमे
नया
संचार
करती
है,
मेरी
खोयी
हुई
दुनिया
में,
अनेक
नए
रंग
भरती
है,
मेरे
बिखरे
सपनो
को,
एक
नया
आकर
देती
है,
मेरे
कदमो
को
मंजिल
की
तरफ
मोड़कर
मेरा
मार्ग
प्रशस्त
करती
है,
हे
माँ,
तू
मेरा
प्रेम
है,
तू
मेरा
संसार
है,
तुम
जीवन
में
मोतियों
का
हार
है,
किन
शब्दों
में
करू
मैं
बखान
तुम्हारा,
हर
शब्द
अधुरा
लगता
है,
तुझे
कहा
प्यार,
या
ममता
की
मूरत,
या
कहूँ
तुझे
परमात्मा
की
सूरत,
करता
हूँ
वंदना
प्रभु
से,
मुझे
भी
एक
अवसर
मिले,
मेरी
माँ
के
चरणों
में
एक
छोटी
सी
जगह
मिले,
जिसमे
मैं
अपना
संसार
बसा
लुं,
जिसके
चरणों
की
धूल
को,
अपने
सिर
का
ताज
बना
लुं,
जिससे
संवर
जाये
जीवन
मेरा.....
जिससे
संवर
जाये
जीवन
मेरा............