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गजल: सुनो मदहोश जमाने वालों...

By कवि- 'चेतन' नितिनराज खरे 'चित्रवंशी'
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'सुनो मदहोश जमाने वालों ,
मेरी ये कहानी है !-- 2
हैं अश्रु जो तेरी आंखों में ,
यादों की निशानी है !!

हैं जख्म जो मेरे सीने मे,
ये चोट पुरानी है !
अब भरना है इन जख्मों को,
बस यही जिन्दगानी है !!

सुनो मद्होश जमाने वालों-------

'हो कैसा भी लघु जटिल कर्ज,
सूद सहित चुका हम देते हैं !
निज वाणी रस के करतब से,
कई सिर झुका हम देते हैं !!'

सुनो मदहोश जमाने वालों-------

'कर्ज कैसा भी हो चाहे,
सूद सहित भरने की आदत है !
कर हिसाब हर पाई का,
न तनिक भी डरने की आदत है!!'

सुनो मदहोश जमाने वालों

'हम वो नही जो पीठ पे ,जा किसी के वार करते हैं !--2
हम छीनकर बुद्धि-विवेक, जीना दुश्वार करते हैं !!
दिल की गहराइयों से भी, हम किसी को प्यार करते हैं!
हम पलकें बिछा के आज भी उसका इंतजार करते हैं!!

सुनो मदहोश जमाने वालों

'दुनिया के हर रिवाज-ए-दस्तूर को,
कर झूंठा दिखाने की तमन्ना है !
जो हतप्रभ कर दे जहां को सारे,
वो कर अनुठा दिखाने की तमन्ना है '

सुनो मदहोश जमाने वालों---------

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English summary
A Touching Poetry on Life written by Oneindia Reader and Poet Chetan Nitinraj Khare 'Chitravanshi'
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