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कविता: चौंका, बर्तन, पूजा, मंदिर, पत्ते, आँगन, तुलसी माँ

By दिगंबर नासवा
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Mother
चौंका, बर्तन, पूजा, मंदिर, पत्ते, आँगन, तुलसी माँ
सब्जी, रोटी, मिर्च, मसाला, मीठे में फिर बरफी माँ

बिस्तर, दातुन, खाना, पीना, एक टांग पे खड़ी हुई
वर्दी, टाई, बस्ता, जूते, रिब्बन, चोटी, कसती माँ

दादा दादी, बापू, चाचा, भईया, दीदी, पिंकी, मैं
बहु सुनो तो, अजी सुनो तो, उसकी मेरी सुनती माँ

धूप, हवा, बरसात, अंधेरा, सुख, दुख, छाया, जीवन में
नीव, दिवारें, सोफा, कुर्सी, छत, दरवाजे, खिड़की माँ

मन की आशा, मीठे सपने, हवन समग्री जीवन की
चिंतन, मंथन, लक्ष्य निरंतर, दीप-शिखा सी जलती माँ

कितना कुछ देखा जीवन में, घर की देहरी के भीतर
इन सब से अंजान कहीं फिर, बैठी स्वैटर बुनती माँ

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English summary
A Toching Poetry on A Toching Poetry on Mother ( Gift of God) by Oneindia Reader and Poet Digamber Naswa.
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